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तेरापंथ का राजस्थानी गद्य-साहित्य
सभी चर्चाएं गहरी बौद्धिक क्षमताओं की प्रतीक हैं । इनसे तेरापंथ के विचार - दर्शन को एक तार्किक प्रखरता प्राप्त होती रही है । यही वह कारण है जिससे तेरापंथ की एक विचारता परिपुष्ट होती रही है ।
ध्यान
ध्यान मुख्य रूप से प्रयोग का विषय है । पर ध्यान की विधि को कित करने के लिए शब्द का टाइपराइटर भी आवश्यक होता है । जयाचार्य तथा मुनिश्री कर्मचन्दजी के ध्यान इस दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । कथा-कहानियां
उपदेश - दान साधु - जीवन का एक अभिन्न अंग है । उसमें कथाकहानियों का भी अपना महत्वपूर्ण योगदान रहता है । सभी धर्म-परम्पराओं की तरह जैन धर्म का कथा साहित्य भी बहुत समृद्ध है । तेरापंथ ने उस समृद्धता को और अधिक पुष्ट किया है । आचार्य भिक्षु ने जो कहानियां लिखी हैं वे कथा - साहित्य की उत्कृष्ट निधियां हैं। उनकी कहानियां मार्मिक होने के साथसाथ भाषा तथा शिल्प की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं ।
जयाचार्य का " कथारत्नकोष" तो इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण संग्रह ग्रन्थ है । लगभग ४५० कथाओं का यह संग्रह राजस्थानी के कथासंग्रह का अमोल रत्न है । इन कहानियों का सम्पादन डॉ० किरण नाहटा किया है ।
इस दृष्टि से मुनिश्री कालूजी का भी बहुत बड़ा महत्व है । कहा जाता है कि उन्होंने सैकडों - संकड़ों स्वोपज्ञ कहानियां लिखी थीं, पर खेद की बात है वे सुरक्षित नहीं रह पाई ।
परिसंवाद
दृष्टि से परि
स्व. मुनिश्री
कथोपकथन के रूप में भावों को अभिव्यक्ति देने की संवाद का एक रूप इन वर्षों में तेरापंथ साहित्य में उभरा है । नेमीचंदजी ने बालोपयोगी परिसंवादों की दृष्टि से काफी परिसंवाद लिखे हैं । " निर्माण के बीज" में मैंने भी कुछ परिसंवाद लिखे हैं । गद्य-कविता
पुराने जमाने में कविता छन्दों के बंध से बंधी हुई थी । वर्तमान युग में कविता को भी गद्य के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है । इस दृष्टि से युवाचार्य श्री ने कुछ कविताएं लिखी हैं। मुनि मोहनलालजी का 'तथ और कथ' भी एक सशक्त प्रस्तुति है ।
संस्मरण
संस्मरण साहित्य की दृष्टि से मुनिश्री हेमराजजी द्वारा प्रबोधित
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