Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ श्रीविद्यानंद-स्वामिविरचितः . तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार: तत्त्वार्थचिंतामणिटीकासहितः (चतुर्थखंडः) 0000000000000 परोक्षमति, श्रुतज्ञानोंका परिभाषण कर श्री उमास्वामी महाराज अब क्रमप्राप्त अवधिज्ञानका व्याख्यान करनेके लिए सूत्रका उच्चारण करते हैं। भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणाम् ॥ २१ ॥ अवधिज्ञानका लक्षण तो " मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् " इस सूत्रमें पडे हुये । अवधि शब्दकी निरुक्ति करके ही कह दिया गया है । अवधिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे और अन्तरंग बहिरंग कारणोंके संनिधान होनेपर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी मर्यादाको लिये हुये जो रूपी पुद्गल और बद्ध जीवद्रव्यों के विवर्तीको प्रत्यक्षरूपसे विषय करनेवाला ज्ञान है, वह अवविज्ञान है। उस अवधिज्ञानके भवप्रत्यय अवधि और क्षयोपशमनिमित्त अवधि ये दो भेद हैं । पक्षियोंको जिस प्रकार शिक्षा विना ही आकाशमें उडमा आ जाता है, मछलियोंको सीखे विना ही अपने जन्म अनुसार जळमें तैरना आ जाता है, उसी प्रकार चार निकायके सभी देव और संपूर्ण नारकियोंके भवको ही कारण मानकर मवप्रत्यय अवधिज्ञान हो जाता है। सम्यग्दर्शनका सन्निधान हो जानेपर यह अवधिज्ञान है, अन्यथा विभङ्गज्ञान कहा जायगा। किं पुनः कुर्वमिदमावेदयतीत्याह । फिर किस फलकी सिद्धिको करते हुए श्री उमास्वामी महाराज इस " भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां" सूत्रका प्रज्ञापन कराते हैं ! इस प्रकार प्रश्नकर्ताकी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी मयाज, यो स्पष्ट उत्तर देते हैं, सो सुनी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 598