Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 15
________________ अभिप्राय दर्शन . गुजरात के सुप्रसिद्ध विद्वान प्रो० आनन्दशङ्कर वापुभाई ध्रुव ने 'स्याद्वाद सिद्धान्त' पर अपना अभिप्राय देते हुए लिखा है कि-'अनेक सिद्धान्तों का अवलोकन करने के पश्चात् उन सब का एक में समन्वय करने की दृष्टि से ही 'स्याद्वाद' का प्रतिपादन किया गया है। 'स्याद्वाद' हमारे सम्मुख एकीकरण का दृष्टि बिन्दु लेकर उपस्थित होता है । शङ्कराचार्य ने 'स्याद्वाद' के ऊपर जो आक्षेप किये हैं, उनका इसके वास्तविक रहस्य से कोई सम्बन्ध नहीं है । यह सुनिश्चित है कि विविध दृष्टि बिन्दुओं से निरीक्षण किये बिना किसी भी वस्तु का वास्तविक स्वरूप समझ में नहीं श्रा सकता । इसी में ही 'स्याद्वाद सिद्धान्त' की उपयोगिता और सार्थकता है । महावीर के द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्त को बहुत से 'संशय-वाद' कहते हैं, परन्तु मैं इसे नहीं मानता । 'स्याद्वाद' 'संशयवाद' नहीं, प्रत्युत यह वस्तु दर्शन की व्यापक कला सिखाने वाला एक सिद्धान्त है। जैन मन्दिर, पालेगाम (नासिक) २०-१-५२ सुश्रावक शङ्करलाल डाह्याभाई, धर्म लाभ । पत्र और पुस्तिका मिली । 'स्याद्वाद' जैसे गूढ विषय पर सरल भाषा में लिखने में विरले ही सफल हो पाते हैं । पर प्रथम दृष्टि में ही मुझे लगा कि आप ने काफी सुबोध और सरल भाषा में लिखा है और इसीलिये आप के लिखने का ढङ्ग मुझे पसन्द आया । परन्तु साथ ही मुझे लगता है कि यदि कुछ स्थलों पर संशोधन करके नई आवृत्ति छपाई जाय तो अच्छा हो । लि मुनि जम्बुविजय

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