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द्वितीय-प्रकरण स्याद्वाद दूसरे के दृष्टिबिन्दु को (Point of view) दिखाता है
स्याद्वाद का अर्थ पहले ही दिखलाया जा चुका है। "अपेक्षा पूर्वक कथन करना यही स्याद्वाद है।" यह स्याद्वाद दूसरे के दृष्टि बिन्दु को देखने को सिखलाता है।
किसी भी वस्तु के स्पष्टीकरण में दूसरा क्या कहता है ? क्यों कहता है ? किस दृष्टि से कहता है ? यह जानना अत्यावश्यक है। जैसे ढाल की दो बाजुएं होती हैं. वैसे ही हरेक चीज में भिन्न भिन्न दृष्टियों से हम विचार करेंगे, तभी उसकी संपूर्ण सत्यता को प्राप्त कर सकेंगे। दूसरा मनुष्य किस दृष्टि से कह रहा है, उसका संपूर्ण सत्य समझने के सिवाय हम कभी भी समन्वय करने के लिये शक्तिशाली नहीं हो सकते। महात्मा गांधी जी ने स्याद्वाद के सम्बन्ध में कहा है:-"जब मैंने जैनों के स्याद्वाद सिद्धान्त को सीखा, तभी मुसलमानों को मुसलमान की दृष्टि से और पारसियों को उनकी दृष्टि से देखना सीखा है।" इससे सत्य-प्रिय व्यक्ति का यह कर्तव्य हो जाता है कि हम किसी वस्तु विशेष के विषय में बोलते है और दूसरा मनुष्य उसी वस्तु के विषय में किसी अपेक्षा से विरुद्ध बोलता है, तो उस नोट-एक पाश्चात्य विद्वान् कहता है-“Key to know man
is his thoughts".