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[ ५० ] के- कदाग्रह के मूल साफ हो जायेंगे। इस लिये 'स्याद्वाद मार्ग का ग्रहण करना प्रत्येक तत्व भिलाषियों के लिये परम कल्याण कारक है । क्योंकि समस्त जगत के कल्याण का यहो सर्वोत्कृष्ट मागे है।
"स्याद्वाद को मौलिकता और सिद्धि" स्याद्वाद यही प्रतिपादन करता है कि हमारा ज्ञान पूर्ण सत्य नहीं कहा जा सकता। वह पदार्थों की अमुक अपेक्षा को लेकर ही होता है। इसलिये हमारा ज्ञान अपेक्षित सत्य है। ___ वास्तव में सत्य एक है, केवल सत्य को प्राप्ति का मार्ग जुदा-जुदा है। अल्प शक्ति वाले अपूर्ण ज्ञानी इस सत्य का पूर्ण रूप से ज्ञान करने में असमर्थ हैं। अतः उनका संपूर्ण ज्ञान अपेक्षित सत्य ही कहा जाता है। यही जैन-दर्शन की अनेकान्त दृष्टि का गूढ़-रहस्य है। ____ जगत में पूर्णत: किंवा सिद्धिः किसको पसन्द नहीं है। सभी उसको प्राप्त करने लिये प्रतीक्षा में नहीं हैं क्या ? धनिक होना किसको पसन्द नहीं है ? तत्ववेत्ता किंवा विज्ञानी होना कौन पसन्द नहीं करता ? योगी-योगीश्वर होना किसे पसन्द नहीं ? मान-प्रतिष्ठा किसको प्रिय नहीं ? कीर्ति कौन नहीं चाहता ? संक्षेप में कहा जाय तो जगत के सभी मनुष्य पूर्णतः और सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं। प्रश्न केवल एक ही रहता है कि वह लाना कहां से । उसके लिये, ऐसा सरल और सीधा कौनसा मार्ग है ? जो मनुष्य से साध्य हो सकता है। तथा उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुंचा जा सकता है।
(स्याद्वाद-मंजरी पृष्ठ २४)