________________
[ ५४ ] राजा मध्यस्थ रहा । उसको न शोक हुआ न हर्ष । कारण कि उसके घर में सुवर्ण द्रव्य जितना था, उतना ही कायम रहा।
इस प्रकार प्रत्येक वस्तु में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य तीनों अवस्थायें (वर्तमान) स्थित हैं। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य यही वस्तु का लक्षण है।
वेदान्त के अनुसार वस्तुतत्व सर्वथो नित्य है । और बौद्ध मत के अनुसार सर्व वस्तु क्षणिक है । परन्तु जैन मतानुसार प्रत्येक वस्तु में उत्पत्ति और नाश होने से पर्याय की अपेक्षा से वस्तु अनित्य है तथा उत्पत्ति और नाश होने पर भी वस्तु स्थिर है। क्योंकि द्रव्य की अपेक्षा से वस्तु नित्य है। इस प्रकार जैन दर्शन प्रत्येक वस्तु को कथंचित् अनित्य मानता है। उत्पाद व्यय और ध्रौव्य परस्पर कथंचित भिन्न हैं। तथापि वे सापेक्ष हैं। नाश और स्थिति के बिना केवल उत्पाद का सम्भव नहीं है। तथा उत्पाद तथा स्थिति के बिना नाश का भी सम्भव नहीं। इस प्रकार उत्पाद और नाश के बिना स्थिति का भी सम्भव नहीं है। प्रत्येक पदार्थ में अनन्त धर्म विद्यमान हैं। पदार्थों में अनन्त धर्मो के के माने बिना वस्तु की सिद्धि नहीं हो पाती। जो अनन्त धर्मात्मक नहीं हैं वह आकाश कुसुम की तरह असत् है। क्योंकि आकाश में न फूल है न फूल में अनन्त धर्म है। इससे वह सत् नहीं। जहां साध्य नहीं है, वहां साधन भी नहीं।