________________
[ १ } प्रश्न--- श्रीमद् देवचन्द्र जी कृत ) 'नय चक्रसार के अनुसार
प्रमाण का क्या स्वरूप है ? उत्तर-सर्वनय के स्वरूप को ग्रहण करने वाला तथा जिसमें सर्व धर्मों की जानकारी है, ऐसा ज्ञान प्रमाण शब्द वाच्य है।
प्रमाण का अर्थ होता है.-नाप । तीनों लोकों के सर्व प्रमेय को नापने वाला ज्ञान प्रमाण है। और उस प्रमाण का कर्ता आत्मा प्रमाता है । वह प्रत्यक्षादि प्रमाणों से सिद्ध है । प्रमाण के मूल दो भेद हैं--प्रत्यक्ष
और परोक्ष । आत्मा के उपयोग से इन्द्रिय प्रवृत्ति बिना जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह प्रत्यक्ष हैं । दो भेद हैं-- १ देश प्रत्यक्ष और २ सर्व प्रत्यक्ष । अवधिज्ञान और मन: पर्याय ज्ञान की गणना देश प्रत्यक्ष में होती है, अवधि ज्ञान पुद्गल के कुछ पर्यायों को जानता है और मनः पर्याय ज्ञान मन के समस्त पर्यायों को प्रत्यक्ष रूप से जानता है, परन्तु अन्य द्रव्य को नहीं जानता इसीलिये इन दोनों ज्ञानों को देश प्रत्यक्ष कहा गया। क्योंकि वह अमुक देशापेक्षया वस्त को जानता है, सर्व देशापेक्षया नहीं।
__ केवल ज्ञान, जीव तथा अजीव, रूपी तथा अरूपी सम्पूर्ण लोक के त्रिकालवी भाव को प्रत्यक्ष रूप से जानता है, अतः वह सर्ग प्रत्यक्ष हैं।
मति ज्ञान तथा श्रुत ज्ञान ये दोनों अस्पष्ट ज्ञान है, इसलिये परोक्ष ज्ञान कहलाते हैं।
परोक्ष प्रमाण के चार भेद हैं-(१) अनुमान (२) उपमान (३) आगम (४) अर्थापत्ति।
जिस चिन्ह से पदार्थ पहिचाना जाता है, उसको लिंग कहते हैं, उससे जो ज्ञान होता है, वह अनुमान प्रमाण है । अर्थात् लिंग देखकर वस्तु का निर्णय करने