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सप्तमंगी अनेकान्त स्वरूप का समर्थन मर्पितानर्पित सिद्ध।३। (अर्पित+अनर्पित+सिद्ध)
. शब्दार्थ• अर्पित-अर्पणा-अपेक्षा से
अनर्पित-अनर्पणा-अन्य अपेक्षा से
सूत्रार्थ-प्रत्येक वस्तु अनेक धर्मात्मक है. क्योंकि भर्पित याने अर्पणा अर्थात् अपेक्षा से और अनर्पित याने अनर्पणा अर्थात् अन्य अपेक्षा से विरुद्ध स्वरूप सिद्ध होता है।
विशेषार्थ-व्याख्या प्रश्न-इस सूत्र का क्या उद्देश्य है ? - उत्तर-परस्पर विरुद्ध किन्तु प्रमाण सिद्ध धर्मों का समन्वय एक वस्तु में किस प्रकार हो सकता है, यह बताना। साथ ही विद्यमान अनेक धर्मों में से कभी एक का और कभी दूसरे का प्रतिपादन कैसे होता है, यह बताना इस सूत्र का उद्देश्य है।
प्रश्न-वस्तु का विशिष्ट स्वरूप कब सिद्ध होता है, यह उदाहरण दे कर समझाइये। ___ उत्तर-विशिष्ट स्वरूप तभी सिद्ध होता है जब उसको स्वरूप से सत् और पर रूप से असत् माना जाता है। उदाहरण के तौर पर-प्रात्मा सत् है, ऐसी प्रतीतियां उक्ति में जो सत्व का ज्ञान होता है, वह सब प्रकार से घटित नहीं होता। यदि ऐसा हो तो आत्मा चेतनादि स्वरूप की तरह अचेतनादि पर रूप से भी सिद्ध माना जायगा । अर्थात् आत्मा में चेतनादि के समान घदत्व भी भासमान होगा। इससे उसका विशिष्ट स्वरूप सिद्ध