Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 105
________________ [ ६ ] वस्तु अनेक धर्मात्मक और अनेक प्रकार के व्यवहार का विषय माना जाता है। वस्तु एक होते हुये भी अनेक रूप हैं । अर्पित श्रनर्पित सिद्ध े: जे एगं जाई से सव्वं जाई । जे सव्वं जाई से एगं जाई || तथा --- : एकोभावः सर्वथा येन दृष्टः सभावाः सर्वथा तेन दृष्टाः ॥ सर्वेभावाः सर्वथा येन दृष्टाः । एको भावः सर्वथा तेन दृष्टः ॥ ( स्याद्वादमब्जरी पृ० १४ ) भावोद्घाटन - प्रत्येक वस्तु स्वरूप से सत् और पर रूप से असत होने के कारण भाव अभाव रूप है । प्रत्येक वस्तु स्वरूप से विद्यमान है ओर पर रूप से अविद्यमान है | इतना होते हुये भी वस्तु को जो सर्वथा भावरूप से माना जायगा तो एक वस्तु के सद्भाव में सम्पूर्ण वस्तुओं का सद्भाव मानना पड़ेगा और कोई भी वस्तु अपने स्वभाव वाली मालूम न होगी । यदि वस्तु का सर्वथा अभाव माना जायगा तो वस्तुओं को सर्वथा स्वभाव रहित मानना पड़ेगा । 1 इससे यह सिद्ध होता है कि - 'घट में घट को छोड़ कर सर्व वस्तुओं का अभाव मानने से घट अनेक रूप से सिद्ध होगा ।' अतः ज्ञात होता है कि एक पदार्थ का ज्ञान करने के साथ साथ अन्यपदार्थों का ज्ञान होता है। कारण यह है कि वह उससे भिन्न * "सरल स्याद्वाद समीक्षा" (तृतीय प्रावृत्ति पृ०१८ से उत

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