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एक देश में स्वपर्याय के अस्तित्व से और अन्यत्र पर पर्याय के नास्तित्व से वस्तु में सत्व तथा असत्व इस प्रकार दोनों धर्म विद्यमान हैं। जिस तरह घट स्वपर्याय की दृष्टि से सत् और पर्यादि पर पर्याय की दृष्टि से असत् है अर्थात् घट स्वपर्याय से घट और पर पर्याय से अघट हैं. इसी तरह जीव में भी स्वपर्यायों की आस्तिता और पर पर्यायों की नास्तिता एक ही काल में है, परन्तु कहने में असंख्याता समय लगाते हैं। इसीलिये स्यात् अस्ति नास्ति इस चतुर्थ भंग का प्रतिपादन किया गया।
पांचवा भंग । _ 'स्यादस्त्येव म्यादवक्त येएव घट:' (स्यात+अस्ति+एव, स्यात+अवक्तव्य+एव + घट:)
अर्थात् कथंचित् घट है और कथंचित् अवक्तव्य है।
एक देश में स्वपर्याय की अपेक्षा से अस्ति और अन्यत्र एक साथ स्वपर उभय पर्यायों की दृष्टि से सत्व और असत्व दोनों धर्मों का समकालिक कथन किसी सांकेतिक शब्द के प्रभाव में असम्भव होने से 'स्यात् अस्ति रयाद वक्तव्य' रूप पांचवा भंग कहा।
छट्टा भंग । 'स्यानास्त्येव स्यादवक्तव्य एव घट:' (स्यात् + न अस्ति, स्यात + अवक्तव्य+ऐव + घट:)
अर्थात अमुक दृष्टि से घट नहीं है और अमुक अपेक्षा से वह प्रवक्तव्य है।
एक देश में पर पर्याय की अपेक्षा से नास्तित्व धर्म की मुख्य रूप से विवक्षा करने के बाद स्वपर्याय से अस्तित्व और पर पर्याय से नास्तित्व- इस प्रकार स्व पर उभय पर्याय की दृष्टि से