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की अपेक्षा से घट असत् है यही बात जीव के विषय में भी कही जा सकती है। जीव में अचेतन, द्रव्य, मूर्त, पर्यायादि धम की नास्तिता है अतः इनकी अपेक्षा से जीव असत् है । इस प्रकार "स्यान्नास्त्वेि घट" अथवा 'स्यान्नस्त्वेि जीवः' यह दूसरा भंग हुआ अजीव में अचेतनादि धर्मों की अस्तिता है, यह बताने के लिये ही स्यात् पद का प्रयोग हुआ है 1
तृतीय भंग
'स्यादवक्तव्य एव घटः कथंचित् घट वक्तव्य है ।
सर्व घटादि वस्तु अपने द्रव्य पर्यादि की अपेक्षा से 'सत्' और अन्य द्रव्य पर्यादि की अपेक्षा से 'असत्' है। इसी तरह जीव भी ज्ञानादि धर्मों की अपेक्षा से 'सत्' और अचेतनादि धर्मों की अपेक्षा से 'असत्' है । इस प्रकार एक ही वस्तु में सत्व तथा असत्व दोनों धर्म समकाल में वर्तमान हैं । परन्तु वाणी से दोनों धर्मों का कथन युगपत सम्भव नहीं, क्योंकि भाषा में ऐसा कोई सांकेतिक शब्द ही नहीं, जिसके द्वारा दोनों धर्मों का समकाल में ज्ञान हो सके । अतः 'स्यात् अवक्तव्य एव घट:' यह तीसरा भङ्ग है । वस्तु धर्म सर्वथा वचन अगोचर है, इस एकान्त दृष्टि की शंका के समाधान के लिये 'स्यात्' पद का प्रयोग किया गया. है
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स्यात् + अवक्तव्य + एव + घटः )
ऊपर के तीनों भङ्ग विकलादेशी और शेष चार भङ्ग कलादेशी हैं।
चौथा भंग |
'स्यादस्त्येव, स्यान्नास्त्येव घटः (स्यात्ः + अस्ति + एव स्यात् + न + अस्ति एवं घटः ) किसी अपेक्षा से घट है और किसी अपेक्षा घट नहीं है
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