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वाला प्रमाण अनुमान प्रमाण है । जैसे-गिरिगहर (गुफा) में धूम्र ( धुआँ की रेखा देखकर अनुमान करना कि - यह पर्वत अग्नि वाला है । इस प्रकार पक्ष तथा साध्य कहना इस उदाहरण में पर्वत पक्ष और अग्नि साध्य हैं ।
रसोईये ने रसोईघर में धओं और अग्नि को एक साथ देख कर यह व्याप्ति निर्धारित की कि जहां जहाँ धुआं होता है, वहां-वहां अग्नि होती है । इस प्रकार व्याप्ति का निर्धारण करना - शुद्ध अनुमान प्रमाण हैं ।
सदृशता के द्वारा अज्ञात वस्तु का जो ज्ञान होता है, वह उपमान प्रमाण है । जिस तरह गाय शब्द से उसके सदृश बैल या गवय का जो ज्ञान हुआ वह उप-मान प्रमाण है ।
किसी फलरूप लिंग के द्वारा अज्ञात पदार्थ का निश्चय करने वाला ज्ञान अर्थापत्ति कहलाता है । यथादेवदत्त शरीर से पुष्ट है, परन्तु वह दिनको भोजन नहीं करता । तो अर्थापत्ति प्रमाण के द्वारा जाना जाता है कि दिन को नहीं तो रात को जीमता होगा अन्यथा उसका शरीर पुष्ट नहीं हो सकता ।
श्न - नैयायिकों की दृष्टि से प्रमाण का स्वरूप बताइये । उत्तर - प्रमीयतेऽनेनेति प्रमाणम्" जिसके द्वारा वस्तु का बरबर निश्चय होता है, वह प्रमाण कहलाता है । उसके दो भेद हैं- ( १ ) प्रत्यक्ष और (२) परोक्ष । मन सहित चक्षु आदि इन्द्रियों से जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष और उससे विपरीत ज्ञान परोक्ष ज्ञान है । परोक्ष विषयों का ज्ञान : परोक्ष प्रमाण से होता है । प्रत्यक्ष को इंगलिश में Direct और परोक्ष को Indirect कहते हैं । परोक्ष के पांच भेद हैं१स्मरण २प्रत्यभिज्ञान ३तके ४अनुमान और ५ आगम |