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स्मरण - पूर्व में अनुभव की हुई वस्तु की स्मृति होनास्मरण है ।
प्रत्यभिज्ञान --- खोई हुई वस्तु जब वापिस हाथ में आती ह', तत्र 'यही वह है' इस प्रकार का जो ज्ञान उदित होता है, यह प्रत्यभिज्ञान है
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स्मरण होने में पहले के अनुभव ही कारणभूत हैं. जब कि प्रत्यभिज्ञान दोनों की सहायता से होता है । इसमें दोनों का समावेश हो जाता है । पहिले किसी व्यक्ति को देखा हो और बाद में वही सामने मिले तब हम कहते हैं कि इसी व्यक्ति को मैंने पहले भी देखा था । इस प्रकार इसमें अनुभव और स्मरण दोनों समाविष्ट हैं । तर्क - जो वस्तु जिसके अभाव में नहीं रहती, उस वस्तु का इसके साथ जो सहभाव सम्बन्ध है, उसका निश्चय करने वाला तर्क है । उदाहरण के तौर पर - बिना अग्नि के धुआं नहीं होता अर्थात् अग्नि के अभाव में धुआं नहीं रह सकता । इनके इस सहभाव सम्बन्ध को शास्त्रों में 'व्याप्ति' कहा जाता है। जब तक कि अग्नि के साथ धुआँ का सम्बन्ध पहिले कभी देखा न हो तब तक धुआँ देखकर अग्नि का अनुमान नहीं किया।
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जा सकता ।
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अनुमान -- अर्थात् जिस वस्तु का अनुमान करना हो उस वस्तु को छोड़ कर अन्यत्र न रहने वाला हेतु । जैसे भगवे रङ्ग का झण्डा देख कर यह ज्ञान होना कि यहां महादेव का मन्दिर है । अर्थात् हेतु को लेकर वस्तु का निश्चय करने वाला अनुमान प्रमाण है ।
आगम-- सद्बुद्धि वाले, यथार्थ उपदेष्टा, जिनको आप्त कहा जाता है, ऐसे पुरुषों के कथन को आगम प्रमाण कहा जाता है । (जैन दर्शन )