Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 87
________________ [ ६८ ] प्रश्न-पूरी व्याख्या कीजिये। उत्तर-यह सामान्य ज्ञान के द्वारा सब वस्तुओं को अपने में समाविष्ट कर लेता है। अर्थात् सामान्य ज्ञान का विषय कहता है। प्रश्न -व्यवहार नय याने क्या है ? उत्तर -इस नय में विशेष धर्म की प्रधानना है । यह आम के लिये वनस्पति लो, ऐसा न कह कर पाम लो, ऐसा स्पष्ट निर्देश करता है। प्रश्न - ऋजुमूत्र नय का क्या प्राशय है है ? उत्तर - यह नय वर्तमान समयग्राही है और वस्तु के नव-नव रूपान्तरों की ओर लक्ष्य देता है। यह सुवर्ण के कट, कुण्डल आदि पर्यायों को तो देखता है, परन्तु इनके अतिरिक्त स्थायी द्रव्य-सुवर्ण की तरफ इसकी दृष्टि नहीं जाती। इसलिये इस नय की दृष्टि से सदा स्थायी द्रव्य नहीं है। प्रश्न-शब्द नय किसे कहते हैं ? उत्तर-शब्द के अनेक पर्यायों के अर्थ को मानने वाला शब्द नय है। जैसे इन्द्र को शक, पुरन्दर अदि नामों से भी कहना। कपड़ा, वस्त्र, लुगड़ा भादि शब्दों का एक ही अथ है, ऐसा इस नय का मानना है। प्रश्न - समभिरुढ़ नय से क्या तात्पर्य है ? । उत्तर -यह नय कहता है कि-एक वस्तु का सक्रमण जब अन्य वस्तु में हो जाता है, तब वह अवस्तु हैं। जैसे- 'इन्द्र' शब्द रूप वस्तु का संक्रमण जब शक में हो जाता है। तब उसका भिन्न अर्थ हो जाता है। 'इन्द्र' श द का अर्थ है - ऐश्वर्यशाली, शक्र का शक्तिशाली और पुरन्दर का अर्थ है शत्रओं के नगर को नाश करने वाला हो जाता

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