Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 71
________________ [ ५२ ] असत् - सत् रूप अपेक्षा से मानता है वही पूर्ण सत्य प्राप्त कर सकता । इसके अलावा जो लोग पदार्थ को केवल सत् या केवल सत् मानने वाले हैं उनसे प्राप्त नहीं हो सकता । तथा पदार्थ का लक्षण जो अर्थक्रियाकारित्व है वह भी उसे प्राप्त नहीं हो सकता । पदार्थ मात्र सत् असत् रूप है । अर्थात् वह स्वस्वभाव से सत्य है परन्तु पर-स्वभाव से असत् है । पाश्चात्य तत्वज्ञानियों में " सर विलियम हेमिलटन" आदि पंडित इस अपेक्षाबाद का आदर करते हैं तथा कहते हैं कि “ पदार्थ - मात्र परस्पर सापेक्ष हैं । अपेक्षा के बिना पदार्थत्व ही नहीं बनता । "अश्व" कहा वहां अनश्व की अपेक्षा हो ही जाती है । दिवस कहा, वहां रात की अपेक्षा होतो जाती है। अभाव कहा, वहां भाव की अपेक्षा हो जाती है । यह "स्याद्वाद" सिद्धान्त को पुष्टावलंबन है । स्याद्वाद भी यही कहता है कि 'सत्' के पीछे 'असत् ' हमेश : खड़ा ही है । वे दोनों परस्पर सापेक्ष हैं । और स्वाभाविक हैं । वह सत् को जैसे आपेक्षिक सत्य मानता है वैसे ही असत् मानता है । इससे स्याद्वादी जो बोलता हो, उसके सामने, उससे विरुद्ध दूसरी दृष्टि से कोई बोलता हो तो उससे वह उस पर गुस्सा नहीं करेगा । वह तो विरोध का कारण खोजने का प्रयत्न करेगा । तथा कारण को शोध करके उसका समन्वय करेगा । इससे विरोध का कारण शांत हो जाता है । वह जानता है कि ' वस्तु मात्र अनन्त धर्मात्मक है ।" यही स्याद्वाद किंवा अनेकांत वाद का गूढ़ रहस्य है । ", यहां एक बात याद रखने की है, वह यह किसी भी पदार्थ का अभिप्राय दृष्टि किंवा मत उच्चारने का हो, वह पदार्थ प्रमाण • ( नय - फर णिका पृष्ठ पांचवीं का)

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