Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 70
________________ [ ५१ ] इसके लिये भगवान महावीर ने जगत के प्राणियों को ऐसा उत्तमोत्तम मार्ग दिखलाया है कि जिसके पालन से अनेक महापुरुषों ने पूर्णता प्राप्त की हैं और वह मार्ग है "स्याद्वाद" किंवा अपेक्षित "सत्य" । उन्नति गिरि के शिखर पर पहुँचने का जगत के लिये यही सर्वोच्च तथा सर्वोत्कृष्ट मार्ग है। अधिकान्त दृष्टि सत्य की वास्तविक सोपान है। अन्य सभी दर्शनों की अपेक्षा भगवान महावीर की सप्त निरूपण करने की शैली भिन्न है। उसी शैली का नाम है, 'अनेकान्तवाद। उसके मूल में दो तत्व हैं, एक पूर्णता और दूसरा यथार्थता जो पूर्ण होकर के यथार्थ रूप से प्रतीत होता है, वही सत्य कहा जाता है। इस अनेकान्त दृष्टि को भगवान महावीर ने अपने जीवन में उतारा। तत्पश्चात् उन्होंने जगत को उपदेश दिया। ___ ऊपर हम देख गये कि अपेक्षित सत्य से पदार्थ की पूर्णता या तो पूर्ण सत्य से हम प्राप्त कर सकते हैं उससे हमें स्वाभाविक विचार उत्पन्न होता है कि यह आपेक्षिक-सत्य क्या होगा कि जिससे पूर्ण-सत्य किंवा सिद्धि प्राप्त हो सकती है, इस विषय का हम पृथक्करण करेंगे। विज्ञान भी अनन्त समय तक विविध-रूप से प्रकृति का अभ्यास कर रहा है। किन्तु प्रकृति के एक अंशमात्र को भी पूर्णतया जान नहीं सका। ___ इस पूर्ण सत्य के प्राप्त करने के कारणों में जैन-दर्शन कहता है कि "अमुक अपेक्षाओं को लेकर ही पदार्थ का सम्पूर्ण सत्य प्राप्त किया जा सकता है।" जो दर्शन पदार्थ मात्र को

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