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[ ४८ ] और ऐसे गरीबों की अधिक संख्या होने से सारा ज्ञाति-द्रव्य दुर्बल पड़ जाता है। शरीर के एक अंग को पक्षाघात होने से सारा शरीर नष्ट-प्रायः होता है। उसी प्रकार ज्ञाति द्रव्य के अंग दुर्वल पड़ने से परिणामतः उस सारी ज्ञाति का ही ह्रास होता है। अतः ऐसे हानिकारक रिवाजों के दूर करने का कार्य भी "भ्याद्वाद" के सिद्धान्त से सीखा जा सकता है।
राजकीय दृष्टि
हमारा समस्त भारतवर्ष भारतवासियों का अवयवी द्रव्य है। भारतवासी उस अवयवी द्रव्य का पर्याय हैं। जिससे समस्त भारतवासियों में समस्त भारतवर्ष की भावना अखंडित होकर बहनी चाहिये । आत्मा की बाल, युवा और वृद्धा अवस्था होती है। उसमें आत्मद्रव्य सभी में समान रीति से रहता है। ये दोनो सापेक्ष हैं। ये अवस्थायें स्वतन्त्र होकर एक दूसरे का वर्चस्व स्थापन करने जाय तो उसमें अपना स्वयं का नाश होगा। इतना ही नहीं, वह अपनी आत्मा को भी भुला देगी। उसी प्रकार भारतवर्ष के संप्रदाय-समाज-वाद स्वार्थ किंवा सत्ता लोभ की लालसा में पड़ यदि सब कोई अपना २ वर्चस्व स्थापित करने को जायें और समग्र भारतवर्ष का हित भूल जायं तो उनकी भी अवस्था ऐसी होगी जैसी ऊपर बताई गई है। ये खुद नाश होंगे और समस्त भारत का हित भी नष्ट होगा। अतः समस्त भारतवासियों ने "भारत हमारा देश है, हम सभी इसके पुत्र हैं और भारत के हित ही में हमारा हित सम्मिलित है।" इस प्रकार की भावना मन में दृढ़ करनी चाहिये। इस भावना से भारत का उत्कर्ष होगा अन्यथा आजकल जो दशा कोरिया की हो रही है, वही दशा भारत की भी होगी। इस तरह