Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 66
________________ [ ४७ ] नहीं दिखता है तो उस पिता के कुए में डूब मरने से क्या फायदा हे ? दुनियां कितनी आगे बढ़ती जा रही है, वह हमें देखना चाहिए । और हमारी शक्ति एवं पूजी के प्रमाण में जिस व्यापार में हमें फायदा दिखता हो, उसको करना चाहिये। कहने का सारांश यह है कि एकान्त बुद्धि और दुराग्रह में न पड़ते हुए अनेकान्त दृष्टि का अवलम्बन करना चाहिये तथा यही हितकारक और उत्तम मार्ग है। ज्ञाति के हानिकारक रिवाज हम लोगों में ऐसे बहुत कुरिवाज घुस गये हैं जो इस समय के लिए अत्यन्त हानिप्रद सिद्ध हुए हैं। उदाहरणार्थ, ज्ञाति जीवन । ___ ज्ञाति, यह समस्त ज्ञाति जनों का अवयवी द्रव्य है। तथा ज्ञाति के लोग समस्त ज्ञातिरूपी अवयवी द्रव्य का अवयव है। अवयवी, अवयवों से कथंचित अभिन्न हैं। एक दूसरे के साथ सापेक्ष हैं। जिससे ज्ञाति जनों में समस्त ज्ञाति रूपी अवयवी द्रव्य का द्रव्यत्व हमेशा बहा करता है। कोई भी रिवाज़ फर्जियात् होने से सभी को करना ही पड़ता है। ज्ञाति भोजन का रिवाज भी ऐसा हो है। इसका परिणाम क्या आता है, इसे देखिये। ज्ञाति में जो लोग लक्ष्मी संपन्न हैं, उनको किसी प्रकार का भी व्यय करने में न उन्हें कोई नुकसान होता है और न ज्ञाति को किसी प्रकार का असर होता है। किन्तु जब गरीबों को या साधारण स्थिति के लोगों को उस रिवाज़ का पालन करने का समय आता है तब उनको अपना सर्वस्व नाश करके भी उस रिवाज का पालन करना पड़ता है। परिणाम यह आता है कि समग्र ज्ञाति-रूपी आत्म-द्रव्य का एक अंग दुर्बल पड़ जाता है।

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