Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 41
________________ [ २२ ] में अपेक्षा दृष्टि से अनेक धर्म रहे हुये हैं। जिस अपेक्षा से हम वस्तु को देखेंगे वह वैसी ही दिखेगी। अभी अभी वैज्ञानिकों ने 'एटम बम' की खोज की है, किन्तु वह हिंसात्मक पापवृत्ति को देने वाली है। उसके स्थान में उससे रक्षण कैसे हो, ऐसा सोच कर देश को आबोहवा कैसे सुधरे प्रजा की तनदुरुस्ती कैसे बढ़े. मानव समाज में चेतनता कैसे, आवे ? ऐसे बाण यदि वैज्ञानिक बन वें तो बनाने वाले का और प्रजा का भी कल्याण हो । हिंसात्मक प्रयोगों से किसी का भी जय नहीं हुआ है तथा होने वाला भी नहीं! कदाचित विजय दिखे भी तो वह चार दिन चाँदनो के जैसा है। अन्त में धर्म से जय और पाप से क्षय होने का है। इसलिये आज ससार में मृत्यु देने वाले प्रयोगों को नहीं करते हुये, बचाने के रक्षणात्मक प्रयोगों का करना ही श्रेयष्कर है। विज्ञानी जैसा अहर्निश विज्ञान में मस्त रहते हैं, वैसे अरविन्द घोप और उनके जैसे अन्य आध्यात्मिक आत्मार्थी, ऋषि, महर्षि, मनिराज, सन्त हमेशा आत्मा की खोज में मस्त रहते आये हैं । जैसे अन्य वस्तुएँ अनेक धर्माकमक हैं, वैसे आत्मा भी अनन्त गुणात्मक है। और इसी से आत्मा से ओतप्रोत रहने वाले दान, दया, तप, भाव, सुश्रुषा, समता, आद्रता, सत्यता, मृदुलता, सरलता, न्याय-निपुणता आदि गुण प्रकट करने के लिए मुमुक्षु लोग हमेशा तत्पर रहते हैं। "आत्म-बल" के आगे पशु-बल और आत्म-लक्ष्मी के आगे भौतिक-लक्ष्मी तुच्छ मात्र है। स्वामी रामतीर्थ एक समय हिमालय पर गये थे। उस समय बर्फ इतना गिरा कि वे गले तक बर्फसे ढंकगये । तथा देख नितांत मृत्यु की नोक पर आये । उस समय आकाश के सामने कर वे बोले,Stop.( बन्द हो जात्रो)। उसी समय बफे बिखर गया

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