________________
[ ४३ ] वह एक अजोड़ चाबी रूप है। इससे परिणाम यह होता है कि मनुष्य को दिन प्रतिदिन उसके कार्य में सफलता प्राप्त होने से वह हमेशा उद्यमशील, पुरुषार्थी और प्रगतिशील रहता है।
प्रगतिशील व्यक्ति को तो अपने हमेशा के कार्यों में भी उसका उपयोग करके चलना चाहिये। क्योंकि मनुष्य जीवन में वह सुख सम्पत्ति का बड़ा साधन है।
द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव के ऊपर अध्यात्म भावना हे आत्मन् ! तू आर्य क्षेत्र में जन्म लेकर, सानुकूल समय पाकर, सम्यक् भाषना हृदय में धारण कर अपनी सुकमाई का सदुपयोग कर और तेरे भावी जीवन का सम्यक रीत्या विचार कर तू अपनी संसार यात्रा सफल बनाले । स्याद्वाद सिद्धांत का भी यही मर्म है।
अन्त में "स्याद्वोद" किंवा "अनेकान्त-वाद" का मुख्य ध्येय संपूर्ण दर्शनों को समान भाव से देख कर अध्यात्म भावना प्राप्त करने का है। तथा वही 'धर्मवाद' है। वही शास्त्रों का वास्तविक धर्म है।
जिस प्रकार पिता, पुत्रपर समभाव रखता है उसी प्रकार अनेकांतवाद संपूर्ण नयों को समान भाव से देखता है। जिस प्रकार सभी नदियां समुद्र में मिलती हैं उसी प्रकार सभी दर्शनों का अनेकान्त वाद में समावेश होता है। तथा जैन दर्शन सब दर्शनों का समन्वय करता है।
जिस प्रकार व्याकरणियों ने शब्द समूह का नाम सर्वनाम, विशेषण क्रियापद, अव्यय आदि में आवश्यक भेद बना कर अभ्यासियों के मार्ग में जैसी सरलता प्राप्त कर दी है वैसे ही श्री मद् हरी-भद्र सूरि जी के कथनानुसार "नय-मार्ग" किंवा