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[ ४४ ) अपेक्षाओं की संख्या गणनातीत होने पर भी कुशाग्र बुद्धि आचार्यों ने खूब मनन तथा परिशीलन के बाद केवल सात नयों में हो उस समस्त समूह को विभाजित कर दिया है।
स्याद्धाद का समस्त विश्व के साथ सम्बन्ध है।
मानस शास्त्र का विद्वान प्रो० विलियम जेम्स ने(W. James) भी लिखा है कि साधारण मनुष्य इन सब दुनिया का एक दूसरे से असंबद्ध तथा अनपेक्षित रूप से ज्ञान करता है। पूर्ण तत्ववेत्ता वही है जो सम्पूर्ण विश्व को एक दूसरे से सम्बन्ध और अपेक्षित रूप में जानता है। (स्याद्वाद मंजरी पृष्ठ ३१ के माधार पर प्रो० विलियम जेम्स के अभिप्राय का हम पृथक्करण करें तो हमें यह स्पष्ट मालूम होगा कि जिसकी सापेक्ष दृष्टि है, वही समस्त विश्व के साथ अपना सम्बन्ध बांध सकता है। दुनियां की अभिनव घटनाओं को जान सकता है। सभों के साथ रुचियुक्त सम्बन्ध साध सकता है तथा अपने मार्ग को विशाल बना सकता है तथा निरपेक्ष दृष्टि वाला अर्थात् साधारण दृष्टि वाला इस विशाल-विश्व में किसी के साथ सम्बन्ध नहीं बांध सकता एवं अपने कार्यों में वह आगे भी नहीं बढ़ सकता। फलितार्थ यह है कि सापेक्ष दृष्टि ही जीवन की मार्ग दर्शिका है। इससे स्पष्ट होता है कि एकान्त दृष्टि की अपेक्षा अनेकान्त दृष्टि कितनी लाभ-दायक है। प्रो. विलियम जेम्स के कथन का यही सार है।
अनेकान्त प्रकार की विचार पद्धिति, यह सब दिशाओं से नोट-*The Principles of Psychology Vol. I.
(अ० २०, पृ० २६१)