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बोलने से कोई जलता नहीं है । लड्डू कहने से किसी का मुह नहीं भरता । अतः इससे स्पष्ट है कि वाचक से वाच्य भिन्न है ।
अब छुरी शब्द बोलने से छुरी का ज्ञान होता है, अग्नि का नहीं । अग्नि से अग्नि का बोध होता है अन्य किसी का नहीं और लड्ड ू कहने से लड्डु का ही बोध होता है अन्य किसी का नहीं। इस दृष्टि से भी "वाचक और वाच्य" भिन्न हैं । विकल्प से शब्द उत्पन्न होता है तथा शब्द से विकल्प | इससे हम देख सकते हैं कि शब्द और विकल्प का कार्यकारण सम्बन्ध है । फिर भी शब्द अपने अर्थ से भिन्न हैं । अब हम नित्यानित्य सम्बन्ध पर विचार करेंगे । दीपक से लेकर आकाश पर्यन्त सभी पदार्थ नित्यानित्य स्वभाव वाले हैं। कोई भी पदार्थ स्याद्वाद की मर्यादा को उल्लघन नहीं करता । जैन दर्शन समस्त पदार्थों को उत्पाद, व्यय और धौव्य युक्त मानता है । उदाहरण - दीपक पर्याय में परिणित तेज के परमाणुओं के समाप्त होने से या हवा लगने से दीपक गुल हो जाता है तो भी वह सर्वथा अनित्य नहीं है । क्योंकि तेज से परिमाण अन्धकार रूप पर्याय में पुदगल द्रव्य रूप से विद्यमान है । इसमें पहले की आकृति का नाश और नयी आकृति की उत्पत्ति हुई है । इसमें दीपक की अनित्यता कैसी रही ? इसी प्रकार मिट्टी का घड़ा बनाने के समय कोष शिवक आदि भिन्न भिन्न आकृतियां बनती हैं। परन्तु उसमें मिट्टी का अभाव ज्ञात नहीं होता । मिट्टी प्रत्यक्ष देखी जाती है ।
इस प्रकार दीपक में हम नित्यत्व और अनित्यत्व दोनों धर्म देखते हैं । जैसे उसका अनित्यत्व साधारण है वैसे नित्यत्व भी साधारण सिद्ध होता है ।