Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 58
________________ [ ३६ ] कुछ दर्शन वाले अन्धकार को प्रकाश का अभाव रुप मानते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि अन्धकार कोई स्वतन्त्र पदार्थ नहीं किन्तु प्रकाश का अभाव मात्र है। इससे वे दीपक को नित्य नहीं मानते। किन्तु यह ठीक नहीं । क्योंकि अन्धकार भी प्रकाश की तरह स्वतन्त्र द्रव्य है। वह पुद्गल का पर्याय है। दीपक और चन्द्रमा का प्रकाश जैसे चाक्षुष (चक्षू से देखा जाय वैसा) है वैसे तम (अन्धकार ) भो चाक्षष है । तथा अन्धकार रूपवान होने से स्पर्शवान भी है क्योंकि उसका स्पर्श शीत है। पुद्गलों के लक्षण बताते हुए'नव-तत्व' नामक ग्रन्थ की ग्यारहवीं गाथा में कहा है कि सद्यधयार उज्जोश्र, पभाछायातवेहि अ। वन्नगन्ध रसा फासा पुग्गलाणं तुलक्खण ॥ _यानि, शब्द, अन्धकार, प्रकाश, प्रभा, छाया आतम तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पश ये पुद्गल के लक्षण हैं। इससे सिद्ध होता है कि अन्धकार भा स्वतन्त्र द्रव्य है और वह भी पुद्गल का पर्याय हैं। कुछ दर्शनकार शब्द को भी, आकाश का गुण मानते हैं । वह आकाश कुसुम-वत् है और वन्ध्या के पुत्र जैसा है। जरा सोचने की बात है कि आकाश अरूपी है और . अरूपी का गुण रूपी कैसे हो सकता है । अब तो रेडियो, ग्रामोफोन, टेलीफोन, वगैरह वैज्ञानिक साधनों ने यह सिद्ध कर दिखलाया है कि शब्द पुद्गल है । यदि शब्द-रूपी पुद्गल नहीं होता तो पकड़ा कैसे जाता ? परमाणु दो प्रकार के होते हैं-स्थूल और सूक्ष्म । सूक्ष्म परमाणु चर्मचक्ष से देख नहीं सकते । हां दिव्यज्ञान से वह देखा जा सकता है। इसी प्रकार यह भी पुद्गल है। किन्तु वह तेज का अभाव नहीं ।

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