Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 43
________________ प्रकरण ५ स्याद्वाद वाणी सर्व दृष्टि का समास स्थान है स्याद्वाद शब्द में स्यात् और वाद ये दोनों शब्द रहे हुए हैं, जिनका अर्थ है कथंचित कथन करना। इससे स्याद्वाद किसी भी वस्तु के लिये "वस्तु सर्वथा ऐसी ही है," ऐसा नहीं कहता। वह इस प्रकार कथन करता है कि जिससे उनमें से दूसरे की बैठक उड़ नहीं जाती, उसमें दूसरे की बैठक को भी स्थान मिल जाता है । जैसे कि किसी ने कहा कि “घट नित्य हैं"। तब स्याद्वादी कहता है "स्यादस्ति” | यानी कथंचित् नित्य है। इससे घड़ा जो अनित्य भी है, उसको भी उसमें स्थान मिल जाता है। उसकी बैठक उससे उठ नहीं जाती। इसी प्रकार कोई कहे कि घड़ा अनित्य है, तब स्याद्वादी कहेगा कि ' स्यात्-नास्ति'। कथंचित् अनित्य है । इससे उसमें से नित्य की भी बैठक उड़ नहीं जाती। किन्तु उसको भी उसमें स्थान मिलता है। तथा घट जो नित्यानित्य है वह उससे प्रमाणित होता है। संसार के सभी पदार्थ मूल रूप से नित्य हैं तथा पर्याय रूप से अनित्य हैं । जीव भी आत्मा रूप से नित्य हैं और देह रूप से अनित्य हैं। घट मिट्टी रूप से नित्य और आकार रूप से अनित्य है। इसी प्रकार सभी पदार्थों के लिए समझना चाहिये।

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