Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 28
________________ [ ] सभी अपनी अपनी दृष्टि से सच्चे हैं । क्यों कि आप लोगों में से जिसने हाथी के जिस जिस भाग को स्पर्श किया है, उसी भाग को आप हाथी समझ रहे हैं। किन्तु हाथो के बहुत से अंश हैं। जब तक उन सभी अंशों का स्पर्श न करें, तब तक संपूर्ण हाथी की आकृति नहीं समझ सकते। बात उन लोगों की समझ में श्रा गई तथा उनके मतभेद दूर हुए। सारांश यह है कि, बोलने वाला किस दृष्टि से बोलता है, उसके दृष्टिकोण को देखना चाहिये । इससे बुद्धि का भी विकास होता है और वस्तु की वास्तविकता को भी हम प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी वस्तु को तत्वतः जानने के लिए, उसके संभावित सभी अंशों को देखना चाहिये । स्याद्वाद दृष्टि, जिसको अनेकान्त दृष्टि भी कहा जाता है, वह वस्तु के समस्त धर्मों का अवलोकन करती है और भिन्न अपेक्षा से समस्त वस्तु को देखती है। तत्पश्चात् वस्तु स्थिति का स्पष्टीकरण करती है। स्याद्वादी हमेशा दूसरे की अपेक्षावृत्ति को देखता है। बाद में अबाधित रीति से उसका समन्वय करने का प्रयत्न करता है। अन्य विभिन्न दृष्टियों के द्वारा सत्य समन्वय करके, विरुद्ध देखे जाने वाले मतों का समुचित रीति से संगति कराता है। स्याद्वाद का यही परम रहस्य है। यह बात निम्नलिखित कार्यकारण भाव से विशेष स्पष्ट हो जायेगी। कार्य-कारण के विषय में भिन्न भिन्न दृष्टिकोण विद्यमान तथा प्रचलित हैं। बौद्ध तथा वैशेषिक दर्शन भेदवादी हैं। उससे वे कार्य-कारण को भिन्न-भिन्न मानते हैं। इससे वे "असत" यह विषय सम्मति प्रकरण (पं० सुखलाल जी वाला के तृतीय काण्ड, गाथा ५०।५२ पृ०८७ से उद्धत है।)

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