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तथा
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"जे एगं जागड़ से सव्वं जागड़े । जे सव्वं जागड़े से एगं जागड़े || " "एको भावः सर्वथा येन सर्वे भावः सर्वथा तेन
दृष्टः ।
दृष्टः ॥
दृष्टाः ।
सर्वे भावाः एको भावः
सर्वथा येन सवर्था तैन
भावोद्घाटन
प्रत्येक वस्तु स्वरूप से वह भाव और प्रभाव रूप भी हैं।
दृष्टः ।।”
("स्याद्वाद" मंजरी पृष्ठ १४ से)
सत् और पररूप से असत होने से
प्रत्येक वस्तु स्वरूप से विद्यमान है और पर रूप से श्रविद्यमान है। इतना होने पर भी वस्तु को यदि सर्वथा भावरूप माना जाय तो एक वस्तु के सद्भाव में संपूर्ण वस्तुओं का सद्भाव मानना पड़ेगा, तथा कोई भी वस्तु अपने स्वभाव वाली नहीं मालूम होगी। और वस्तु का यदि सर्वथा अभाव माना जायेगा तो वस्तुओं को सर्वथा स्वभाव रहित मानना पड़ेगा ।
इससे यह सिद्ध होता है कि "घट में उसको छोड़ कर सभी वस्तुओं का अभाव मानने से घट अनेक रूप सिद्ध होगा ।"
इससे सिद्ध होता है कि एक पदार्थ का ज्ञान करने के साथ दूसरे पदार्थ का ज्ञान हो जाता है। क्योंकि वह उससे भिन्न, दूसरे सभी पदार्थों की व्यावृत्ति (अभाव) नहीं कर सकता है ।
आगमों में भी वहा है कि, "जो एक को जानता है वह जानता है और सभी को जानता है वह एक का