Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 36
________________ 1 १७ ] एक समय बड़ौदा के स्वर्गीय श्री महाराज सयाजीराव ने विद्यार्थियों के समक्ष भाषण देते हुये कहा था: "तुम लोगों ने तुम्हारे आदर्श हमेशा उच्च रखने चाहिये । तुम आकाश की ओर देखकर तीर लगाओगे तो वह एक झाड़ तक ही ऊँचा जायेगा । झाड़ के सामने निशाना लगा कर तीर चलाओगे तो उससे भी कम जायेगा ।" इस पर यह समझने का है कि जिनको आगे बढ़ने की उम्मीद-तमन्ना है, उन्हें तो सदा आगे बढ़ने की हीमहत्वाकांक्षा रखनी चाहिए। महत्वाकांक्षियों का जन्म ही विजय के लिए होता है और उन्हीं को विजय की माला वरती है । स्याद्वद का सिद्धांत भी मनुष्य मात्र को व्यक्ति-विशिष्ट बना देता है। इससे मनुष्य कर्तव्यशील होता है तथा उसकी आन्तरिक शक्तियों का प्रादुर्भाव होता है। वही उसे हरेक कार्य में उत्साहित बनाता है । एक स्त्री कहती है कि मैं दासी हूँ । इस भावना से वह कभी रानी नहीं हो सकती किन्तु मैं भी रानी क्यों न बनू ? ऐसी विशिष्ट भावना रखने वाली स्त्री कभी रानी बन सकती है । कदाचित् रानी न भी बने तो भी दासी से तो उच्च स्थान अवश्य ही प्राप्त करेगी । तात्पर्य यह है कि हरेक मनुष्य अपने मन में ऐसा धारे कि मैं भी कुछ हूँ और यही उसके आगे बढ़ने का श्रेयस्कर मार्ग है । यही मार्ग "स्य द्वाद" सिद्धांत सिखलाता है। बुजदिल, हृत् वीय्यं, पुरुषार्थहीन मनुष्यों के लिए तो जगत में कोई स्थान ही नहीं, यानि ( might is right) जिसकी लाठी उसकी भैंस । * (२) वस्तु एक होने पर अनेक रूप हैं: || अर्पितानर्पित सिद्ध ेः ॥ (दूसरी तरह से )

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