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इससे स्पष्ट होता है कि सापेक्ष वचन बोलना, यही हितकारक है । हम सामान्य भाषा में भी कहते है कि "Ask your conscience and then do it." अर्थात पहिले अपनी आत्मा से पूछो और तब करो ।
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श्री भीखनलाल जी आत्रेय एम० ए०, डी० लिट्० काशी दर्शनाध्यापक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने अपने एक लेख में लिखा है: "सत्य और उच्च भाव तथा विचार किसी एक जाति या धर्म वालों के लिये नहीं; बल्कि मनुष्यमात्र का इन पर अधिकार है । मनुष्य मात्र को अनेकान्तवादी, स्याद्वादी और अहिंसावादी होने की आवश्यकता है। केवल दार्शनिक क्षेत्र में ही नहीं धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में भी ।