Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 23
________________ [ ४ ] लेखक श्री चिमनलाल जयचन्दशाह एम० ए० ने पुस्तक के ५३ पृष्ठ में इस प्रकार लिखा है :___ "संजय बेलट्ठि पुत्र कहता है कि 'जो है वह मैं कह नहीं सकता - और वह नहीं है, ऐसा भी मैं नहीं कह सकता।' किन्तु महावीर कहते हैं कि मैं कह सकता हूँ कि एक दृष्टि से वस्तु है और यह भी कह सकता हूँ कि अमुक दृष्टि से वह नहीं संक्षिप्त में कहा जाय तो स्याद्वाद यह जैन तत्वज्ञान का अद्वितीय लक्षण है । जैन बुद्धिमत्ता का इससे विशेष सुन्दर शुद्ध और विस्तीर्ण दृष्टान्त दूसरा क्या दिया जा सकता है। इस सिद्धान्त की खोज का मान जैन-दर्शन को प्राप्त होता है। ___ जैन दृष्टि से कोई भी वस्तु एकान्त नहीं है। क्यों कि वस्तु मात्र अनेक धर्मात्मक है। तथा भिन्न-भिन्न अपेक्षा से उसमें भिन्न भिन्न धर्म रहे हैं। उदाहरण के तौर पर मिट्टी की अपेक्षा से घट नित्य है, पर्याय (परिवर्तित) की अपेक्षा से अनित्य है। रङ्ग की अपेक्षा से लाल है. आकार की अपेक्षा से गोल है। इस प्रकार अपेक्षा दृष्टि से हरेक वस्तु में गुण धर्म रहे हुये हैं । स्याद्वादी कौन हो सकता है ? _ जो सच्चा स्याद्वादी होता है वह सहिष्णु होता है। वह अपने खुद के आन्तरिक आत्मविकारों पर विजय प्राप्त करता है। इतना ही नहीं किन्तु दूसरों के सिद्धान्तों पर भी सापेक्ष-चिन्तक होने से, सम्मान की दृष्टि से देखता है । तथा मध्यस्थ भाव से सम्पूर्ण विरोधों का समन्वय करता है। श्री सिद्धसेन दिवाकर ने वेद, सांख्य, न्याय, वैशेषिक और बौद्ध पादि दर्शनों पर द्वात्रिंशिका

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