________________
[ २ ]
बम्बई ४
ता० १०-१२ - ५१
धर्मस्नेही भाई श्री शङ्कर भाई,
(३)
आपके तत्व ज्ञान सिरीज़ के प्रथम पुष्प 'सरल स्याद्वाद मत समीक्षा' की तृतीय आवृत्ति को श्रथ से इति तक पढ़ गया । श्रापने 'स्याद्वाद' जैसे कठिन विषय का काफ़ी सुबोध और सरल भाषा में प्रतिपादन किया है । यह आपकी स्याद्वाद सिद्धान्त विषयक रुचि और अभ्यास का परिचायक है ।
नई प्रवृत्ति में नयरेखा, सप्तभङ्गी तथा निक्षेपादि के विषय बढ़ाने के साथ साथ संक्षिप्त टिप्पणी देकर पुस्तक की उपयोगिता में बिशेष . वृद्धि कर दी गई है ।
मेरे नम्र अभिप्राय के अनुसार, यदि आप जैन धर्म के ऐसे हीं मूलभूत विषय – जैसे, नय तथा प्रमाण, कर्मवाद षड्द्रव्य, त्रिपदी, रत्नत्रयी आदि पर ऐसी ही पुस्तकें प्रकाशित करें तो निश्चित रूप से साधारण जनता को इस विषय का ज्ञान सरलता पूर्वक हो सकता है। ऐसी पुस्तकों में भाषा जहाँ तक हो सके सरल रक्खी जाय और जैन परिभाषिक शब्दों का प्रयोग भी यथासम्भव कम किया जाय तो इन विषयों पर रुचि रखने वाले जैनेतर पाठकों को ये पुस्तकें काफ़ी उपयोगी और सुग्राह्य होगी, ऐसा मैं मानता हूं । यह कार्य श्राप के द्वारा बहुत अच्छी तरह से हो सकता हैं, ऐसा मेरा विश्वास है । यदि ऐसा हो जाय तो हमारी शिक्षण संस्थानों में इन विषयों की पाठ्य पुस्तकों की जो कमी दृष्टिगोचर हो रही है; वह भी दूर हो जाय । यदि श्राप इस कार्य को हाथ में लें तो आपके तद्विषयक प्रेम, मनोयोग और परिश्रमशीलता के कारण श्राप उसमें अवश्य सफल होंगे ।
पकी इस पहली पुस्तक को अपनी प्रत्येक शिक्षण संस्था को अपनाना चाहिये, ऐसी मेरी सिफारिश है ।
लि. भवदीय शुभेच्छुक
पु. सु. बदामी के प्रणाम ।
compartmen