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[ ४ ] दृष्टि में रखकर ऐसे और इससे भी अधिक सुन्दर साहित्य प्रसिद्ध करने में शासन देव आपको सहायता दे, यही शुभेच्छा।
मुनि हंस सागर ३६४. सैन्डहर्स्ट रोड बम्बई ४
प्रिय शंकरलाल भाई। ... 'स्याद्वाद मत समीक्षा' भेजने के लिये श्राभार । मैं इसको पढ़ गया हूँ । संक्षेप में भी आपने विषय को उचित न्याय दिया है। जैन और इतर दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों को प्रकट करने वाली ऐसी छोटी पुस्तिकाओं की आवश्यकता है।
___ इसकी नई श्रावृत्ति संभव हो तो एक दो बातें सूचित करूँ । इसकी भाषा जितनी सरल होगी उतनी ही सामान्य पाठकों तथा जैनेतर लोगों के द्वारा यह विशेषरूप से पढी जायगी । इसलिये सरल स्याद्वाद' के रूप में अवश्य प्रकाशित करो, यह इच्छानीय है । प्रस्तावना श्रादि में जिनेश्वर भगवान के प्रति जो आदर वचन है, वे हमारे लिये स्वाभाविक हैं परन्तु जैनेतरों को इसमें स्वमत प्रचार की गन्ध आना सम्भव है। इसलिये पुट्ठों तथा अर्पण पत्रिका में व्यक्त किये गये आपके हेतु के लिये ये कुछ बाधक हो, ऐसा सम्भव है । नई आवृत्ति में इसको और पुछे पर की (रूढ़ जैन साम्प्रदायिक ढङ्ग की) विगत को उचित लगे तो कम करना । ___ अनुकूलता हो तो अब स्याद्वाद के ऊपर २००, ३००, ४० पृष्ठ का एक पुस्तक बन सके उतनी सादी भाषा में उस विषय को जानने वालों के लिये लिखो।
ता० १३-११-५०
स्ने० विपिन जीवनचन्द झवेरी गु० प्रो० अलफिन्सटन कालेज, बम्बई