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(प्रथम तथा द्वतीय आवृत्ति से उद्धृत)
स्याद्वाद मत समीक्षा पढ़कर आनन्द हुआ । स्याद्वाद सिद्धांत को सभी पक्ष के लोग अपनावें तभी देश का संगठन शक्य हो सकता है, लेखक के इस विचार के साथ मैं सहमत हूँ । कुछ लोग स्याद्वाद को संशयवाद कहते हैं, परन्तु वास्तव में यह समन्वयवाद है, इस प्रकार का आचार्य श्रानन्द शंकर का अभिप्राय मुझे मान्य है । योग्य समीक्षा करने वाले को प्रत्येक प्रश्न का निर्णय देते समय ढालकी दोनों बाजू दिखलाई देती हैं । और अधिक सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन करने वाले को तो इसकी अनेक बाजू दिखाई देती हैं। इस प्रकार का सग्याग्दर्शन करने वाले, ऐकान्तिक निर्णय नहीं दे सकते, यह सर्वथा स्वाभाविक है । इनको दही-दूधिया कहने वाले भूल करते हैं और अवलोकन करने वाले की न्याय दृष्टि पर अन्याय कर बैठते हैं ।
अनेक मतमतान्तरों के वमड में से रहस्य खोज कर सर्वधर्म समभाव और परमत सहिष्णुता सिखाने में स्याद्वाद अत्यन्त महत्व की सेवा बजा सकता है । इस पुस्तक में शुरू किये सिद्धान्त की विशद और सदृष्टान्त समीक्षा लेखक के द्वारा विस्तृत रूप से अनेक प्रकाशनों द्वारा हो, ऐसी अभिलाषा रहती है ।
धीरजलाल पारीख, गु० प्रो० रामनारायण रुइया कॉलेज ।