Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ [ ५ ] L (प्रथम तथा द्वतीय आवृत्ति से उद्धृत) स्याद्वाद मत समीक्षा पढ़कर आनन्द हुआ । स्याद्वाद सिद्धांत को सभी पक्ष के लोग अपनावें तभी देश का संगठन शक्य हो सकता है, लेखक के इस विचार के साथ मैं सहमत हूँ । कुछ लोग स्याद्वाद को संशयवाद कहते हैं, परन्तु वास्तव में यह समन्वयवाद है, इस प्रकार का आचार्य श्रानन्द शंकर का अभिप्राय मुझे मान्य है । योग्य समीक्षा करने वाले को प्रत्येक प्रश्न का निर्णय देते समय ढालकी दोनों बाजू दिखलाई देती हैं । और अधिक सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन करने वाले को तो इसकी अनेक बाजू दिखाई देती हैं। इस प्रकार का सग्याग्दर्शन करने वाले, ऐकान्तिक निर्णय नहीं दे सकते, यह सर्वथा स्वाभाविक है । इनको दही-दूधिया कहने वाले भूल करते हैं और अवलोकन करने वाले की न्याय दृष्टि पर अन्याय कर बैठते हैं । अनेक मतमतान्तरों के वमड में से रहस्य खोज कर सर्वधर्म समभाव और परमत सहिष्णुता सिखाने में स्याद्वाद अत्यन्त महत्व की सेवा बजा सकता है । इस पुस्तक में शुरू किये सिद्धान्त की विशद और सदृष्टान्त समीक्षा लेखक के द्वारा विस्तृत रूप से अनेक प्रकाशनों द्वारा हो, ऐसी अभिलाषा रहती है । धीरजलाल पारीख, गु० प्रो० रामनारायण रुइया कॉलेज ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108