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व आभार प्रदर्शन
इस पुस्तक की दो आवृत्तियां पहले प्रकाशित हो जाने के बाद इसकी तीसरी आवृत्ति में उचित संशोधन तथा परिवर्धन किया गया था। नयरेखा, सप्तभङ्गी तथा निक्षेपा के विषय नये बढ़ाये गये थे। ___ जैसा कि पहली आवृत्ति में कहा गया था—इस विषय पर लिखने के लिये मुझे रायबहादुर सेठ श्री जीवतलाल भाई प्रतापशी के अनेकान्त सम्बन्धी निबन्ध योजना से प्रेरणा मिली है। इसके लिये मैं उनका आभार मानता हूँ।
. इस पुस्तक की पहली दो आवृत्तियों में उचित सुधार धर्मशास्त्र निष्णात श्री सुरचन्द भाई पु. बदामी तथा श्री फतहचन्द भाई ने किया था। इस तृतीय आवृत्ति में भी यह कार्य श्री फतहचन्द भाई ने ही किया है। उन्होंने इस पुस्तक की मेरी हस्तलिखित प्रतिलिपि को पढ़ कर उसकी त्रुटियों को दूर करने के साथ २ मुझे प्रोत्साहन तथा योग्य मार्गदर्शन भी दिया है; इन सब के लिये मैं उनका हार्दिक आभार मानता हूँ। पालनपुर निवासी श्री कान्तिलाल भाई बी० ए० की अमूल्य सूचनाओं के लिये भी मैं उनका आभारी हूँ। इसके अतिरिक्त मैं अपने उन मित्रों एवं स्नेहियों का आभार मानना भी नहीं भूल सकता कि जिन्होंने मुझे इस कार्य के लिये प्रेरित और प्रोत्साहित किया है।
परम पूज्य विद्वद्वर्य मुनि महाराज श्री जम्बु विजय जी ने इस ‘स्याद्वाद मत समीक्षा' की तृतीय गुजराती आवृत्ति को स्वयं परिश्रमपूर्वक पढ़ कर सुधारा है। उसी पर से इसका हिन्दी