Book Title: Syadvad
Author(s): Shankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
Publisher: Shankarlal Dahyabhai Kapadia

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Page 10
________________ [ २ ] किसी भी धर्म को किसी प्रकार की भी क्षति पहुँचाये बिना जैन तथा जैनेतरों की हजारों मानव मेदिनी के बीच जाहिर व्याख्यान द्वारा जैन धर्म को विश्वधर्म ठहरा कर उसके गौरव में वृद्धि करना ही समाज तथा विश्वप्रेम के साथ साथ उनके ज्ञाननिष्ठत्व को प्रमाणित करता है । इसी लिये बम्बई के आजाद मैदान में वहां के मेयर (नगरपति) श्रीमान् गणपतिशङ्कर को यह कहना पड़ा कि "राजकीय क्षेत्र में जिस प्रकार 'बल्लभ' अवतीर्ण हुए धर्मक्षेत्र में उसी तरह विजयवल्लभ सूरिजी का जन्म हुआ" पूज्य श्री की महत्ता का ज्ञान कराने के लिये ये शब्द ही पर्याप्त हैं। भगवान महावीर स्वामी ने गौतम गणधर को कहा है कि"हे गौतम ! तू क्षणमात्र भी प्रमाद न करना" पूज्य श्री के जीवन के आज तक के कार्य चमत्कार को देखते हुए यह कहना पड़ता है कि इस सुनहरे सूत्र को उन्होंने अपने जीवन में पूरी तरह उतार लिया है। ___ अपने मुनिराज व्याख्यानों में बहुधा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को देख कर चलने का उपदेश देते हैं; परन्तु उस पर अमल करने वाले तो पूज्य श्री जैसे विरले ही हैं । ___पूज्य श्री का इस बार का बम्बई का चातुर्मास समाजोद्धार के लिये उनकी भीष्म प्रतिज्ञा, और उसमें श्री खीमजी भाई छेड़ा का सहयोग, यह सव जैन इतिहास के पृष्ठों पर सुवर्णाक्षरों से हमेशा अङ्कित रहेगा। पूज्य श्री ने समाजोद्धार तथा शासन अभिवृद्धि के कार्य किये हैं, इतना ही नहीं उन्होंने शासन के एक सच्चे सुभट की तरह कार्य किया है। पंजाब में स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे प्रखर विद्वान और महापुरुष ने आर्य समाज की स्थापना की। हजारों हिन्दू भाइयों ने उस धर्म को स्वीकार किया। उस समय जैन धर्म पर भीषण प्रहार होने लगे; निन्दा

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