Book Title: Sursundari Charitra
Author(s): Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 17
________________ ( ६ ) बगीचे, उद्यान, कूप आदि से सुंदर होने से वह नगर देवताओं का भी मन को हरनेवाला है, नगर के समस्त गुणों से युक्त होने से वह अमरावती समान है । जहाँ के लोग बड़े प्रियंवद धार्मिक तथा त्यागी और कलाकुशल हैं, सतत अपने-अपने काम से घूमनेवाले लोगों से जहाँ की मार्गश्रेणियों अत्यंत भरी है; करोड़ों पताकाओं से आकाशमार्ग आच्छादित होने से गर्मी के दिनों में भी जहाँ सूर्य की किरणों से लोग संतप्त नहीं होते हैं, जिस नगर में महलों की दीवालों पर खचित रत्नों की प्रभा से अंधकार नहीं होने से लोगों को पता नहीं चलता है कि रात कब बीत गई, जिस नगर की सुंदरता को कौतुकवश टकटकी लगाकर देखने से देवगण निर्निमेष बन गए, श्वेत महलों के शिखरों पर पवन से कंपित ध्वजाएँ मानो सूर्य के सारथी को और ऊँचे जाने की प्रेरणा देती हो, गुणों के भंडाररूप उस नगर में एक ही दोष है कि निर्दोष साधुवर्ग सतत गुप्ति से गुप्तता में बंद दिखाई देते हैं । उस नगर में विपुल हाथी घोड़े रत्नों का स्वामी यथोचित राजनीति का पालन करने से सब के मन को आनंद देनेवाला, अपने बुद्धिबल से समस्त शत्रुओं को वश में करनेवाला, याचकों की अभिलाषाओं को पूर्ण करनेवाला, दृढ़ कठोर भुजाओं के अतुल पराक्रम से शत्रुपक्ष को पराजित करनेवाला, के वदन कमल को संकुचित करने में समान प्रखर प्रतापी, सिंह के समान समुद्रसमान गंभीर, चंद्रमा के समान लोगों के करनेवाला, रूप से साक्षात् कामदेव के समान चंद्रमा के दूसरों के शत्रु स्त्रियों समान सूर्य के बल में निशंक, मन को आनंदित बुद्धि से बृहस्पति

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