________________
(४)
तथा विद्वानों का मनोरंजन ये दो काम कवियों द्वारा एक साथ नहीं किए जा सकते हैं, दोनों पक्षों का रंजन करना संभव नहीं हैं, किसी एक पक्ष के अनुकूल की गई रचना से दूसरा पक्ष अप्रसन्न हो जाएगा, आलङ्कारिक संस्कृत भाषा में बनाया गया काव्य विद्वानों को प्रसन्न करता है, प्राकृत ललित काव्य सामान्य जन को प्रसन्न करता है, गुरुकृपा से मैं उपमा श्लेष रूपक आदि अलङकारमय संस्कृत काव्य भी बना सकता हूँ किंतु सामान्य जन बोधन के लिए प्राकृत भाषा में ही इस ग्रंथ की रचना करता हूँ।
शिष्याओं में प्रधान, अवश्य मानने लायक वचनवाली गुरु बहन प्रवर्तिनी श्री. कल्याण मती के वचन से मैंने यह कथा आरंभ की है, कवित्व के अभिमान से नहीं, विधवा कुल बालिका के कटाक्ष विक्षेप के समान निष्फल विघ्नों को शांत करने के लिए अब अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है, इसलिए सावधान होकर मेरे द्वारा कही जाती हुई कथा को सुनें, इसके प्रत्येक परिच्छेद में अढ़ाई सौ गाथाएँ हैं--
' ऊर्ध्व लोक और अधोलोक के मध्य में अत्यंत विस्तारवाला एक तिर्यग्लोक है, जिस प्रकार सुमेरु पर्वत देवताओं से सेवित है, उसी प्रकार यह भी विद्वानों से सेवित है उस लोक में एक लाख योजन विस्तारवाला, चारों तरफ समुद्रों से घिरा हुआ सुप्रसिद्ध जम्बूद्वीप नाम का एक द्वीप है, उसके दक्षिण भाग में सुंदर भरत क्षेत्र है, जो वैताढ्य पर्वत द्वारा दो भागों में विभक्त है, उस दक्षिणार्द्ध भरत में गंगा और सिंधु के मध्य भाग में वृक्षों में कल्पवृक्ष की तरह सब देशों में प्रधान, धनसंपत्तियों से युक्त, जहाँ की साधारण जनता भी नृत्य गीतादि कलाओं में कुशल है, हाथी, ऊँट, भैंस, गर्दभ और गाय-बैल आदि पशुओं से जो भरा