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है, - इस ग्रंथको लिखनेमें मुझे ' इतिहासतत्त्व महोदधि ' उपाध्याय श्री इन्द्रविजयजी ( वर्तमान में आचार्यश्री विजयइन्द्रसूरिजी ) की मुझे पूर्ण सहायता मिली है । यदि वे सहायक न होते तो मेरे समान अंग्रेजी, फ़ारसी और उर्दू से सर्वथा अनभिज्ञ व्यक्तिके लिए इस ग्रंथका लिखना सर्वथा असंभव था । इसलिए शुद्ध अन्तःकरणके साथ उनका उपकार ही नहीं मानता हूँ बल्के यह स्पष्ट कर देता हूँ कि, इस ग्रंथको लिखनेका श्रेय मुझे नहीं उन्हें है । शान्तमर्त्ति आत्मबंधु श्रीमान् जयन्तविजयजी महाराजका उपकार मानना भी नहीं भूल सकता; क्योंकि उन्होंने प्रूफ-संशोधन करनेमें मेरी अतीव सहायता की है ।
गोडीजीका उपाश्रय, पायधौनी, बम्बई. अक्षय तृतीया वीर सं. २४४६.
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विद्याविजय ।
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