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गाथाथी जाणवो. सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति अनुगम तो 'व्याख्या ' ना लक्षणरूप संहितादि छ प्रकारमा १ पदार्थ, २ पदविग्रह, ३ चालना अने ४ प्रत्यवस्थान लक्षणरूप जे व्याख्यानना चार भेदस्वरूप ते सूत्रानुगमने विषे संहिता अने पद लक्षण विशिष्ट व्याख्यानना बे भेद छते होय छे. आ कारणथी सूत्रानुगम कहेवाय छे. तेमां अल्पग्रंथ (थोडा शब्दवाडं) महान अर्थादि विशिष्ट सूत्रना लक्षण सहित अने स्खलितादि दोष रहित सूत्र उच्चार करवा योग्य छे. ते आ प्रमाणे
मू०-सुयं मे आउसं ! तेणं भगवता एकमक्खायं (सू०१) मूलार्थ:-श्री सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी प्रत्ये कहे छ-हे आयुष्मन् शिष्य ! ते महावीर भगवाने आ प्रमाणे (आगळ कहेपर वाशे तेम ) जे कहेलं ते में सांभळलु छ (ते ज हुँ कहुं छं).
टीकार्थः-आ सूत्रनी व्याख्या संहितादिक्रमवडे हुं कहुं छ. ते विषे भाष्यकार कहे छ। सुत्तं १ पयं २ पयत्थो ३, संभवतो ४ विग्गहो वियारो य ५। दूसियसिद्धी नियमय-विसेसओ नेयमणुसुत्तं
१ अस्खलितादि गुण सहित सूत्र कहेवू, २ पछी पदच्छेद करयो, ३ पदनो अर्थ कहेवो, ४ जो समासनो संभव होय तो NI १३ शुं, १४ केटला प्रकारे, १५ कोनु, १६ क्यां, १७ कोनामां, १८ केवो रीते, १९ केटलो होय, २० केटल अंतर, २१ अंतर IM रहित, २२ भव, २३ आकर्ष, २४ स्पर्शना, २५ निरुक्तिद्वार ए पचोश द्वारोवडे जाणवा योग्य छे.
१. सूत्रना आठ गुणो अने बत्रीश दोषना अभावर्नु स्वरूप महाभाष्यनी टोकाथों जाणो लेवू.
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