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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१०॥
१. स्थानाध्ययने उपक्रमवर्णन.
| ते गुण अने गुण ते भाव, स्थान शब्दनो निक्षप तो प्रथम ज कहेल छ तेमां गणना स्थानवडे अहिं अधिकार छ; तेथी एक लक्षण जे स्थान संख्याभेदरूप एक स्थान, अने एक स्थान विशिष्ट जीवादि अर्थना प्रतिपादनमा समर्थरूप अध्ययन पण एक स्थान छे. ओघनिष्पन्न अने नामनिष्पन्न ए बने निक्षेप कहेवाया.
३. सूत्रालापक. हवे सूत्रालापक निक्षेप कहेवानो समय आवेल छे तेनुं स्वरूप आ प्रमाणे-श्रुतं मे आयुष्मन् ! इत्यादि सूत्रपदोनो निक्षेप, नामादिनुं स्थापन ते कहेबानो समय प्राप्त छ पण ते कहेता नथी. कारण ? सूत्र छते तेनो संभव छे. सूत्र तो सूत्रानुगममा छे अने ते अनुगमनो ज भेद छ, माटे पहेला अनुगम ज वर्णवाय छेअनुगम ये प्रकारनो छ : १ नियुक्तिअनुगम अने २ सूत्रानुगम. तेमा नियुक्ति अनुगम १ निक्षेपनियुक्ति, २ उपोद्घातनियुक्ति अने ३ सत्रस्पर्शिकनियुक्तिना भेदथी त्रण प्रकारनो छे. तेमां पण निक्षेपनियुक्ति अनुगम स्थान, अंग, अध्ययनादि एक शब्दना निक्षेपना प्रतिपादनथी नियुक्तिअनुगभर्नु पण प्रतिपादन थयुं ज छे. उपोद्घातनियुक्ति अनुगम तो-*उद्देसे निद्देसे य निग्गमे' इत्यादि (महाभाष्यनी) बे
* उद्देसे निद्देसे य, निग्गमे खेत कालपुरिसे य । कारणपञ्चय लक्खग नए, समोयारणाणुमए ।। ९७३ ।। कि कहिविहं कस्स, कहि केसु कहं के चिरं हवइ कालं । कइ संतरमविरहियं, भवागरिसकोसणनिरुति ॥ ९७४ ।। (विशेषावश्यकभाष्प) शब्दार्थ -१ उद्देश, २ निर्देश, ३ निर्गम, ४ क्षेत्र, ५ काल, ६ पुरुष, ७ कारण, ८ प्रत्यय, ९ लक्षण, १० नय, ११ समवतार, १२ अनुमत,
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H॥१०॥
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