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: श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ / जनवरी-मार्च २००६
तत्त्वार्थसूत्र से तुलना करने पर विदित होता है कि जैन सिद्धान्त - दीपिका उसका एक पूरक ग्रन्थ है । तत्त्वार्थसूत्र में जिन अनेक पारिभाषिक शब्दों के लक्षण उपलब्ध नहीं हैं, उनके लक्षण जैन सिद्धान्त - दीपिका में सम्प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए लोक, अलोक, परमाणु, स्कन्ध, देश-प्रदेश, गुण, पर्याय, अर्थ पर्याय, व्यञ्जन पर्याय, स्वभाव पर्याय, विभाव पर्याय, उपयोग, साकारोपयोग, अनाकारोपयोग, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान आदि पाँचों ज्ञानों, अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा; औपपत्तिकी, वैनयिकी आदि चारों बुद्धियों के लक्षण जैन सिद्धान्तदीपिका में सूत्र निबद्ध हैं। इसी प्रकार इन्द्रिय, मन, भाव, उपशमादि पाँचों भावों; पर्याप्ति, प्राण, अजीव, कर्म, प्रकृति, स्थिति आदि चतुर्विध बन्ध; पुण्य, पाप, मिथ्यात्व, अविरति आदि पॉच आस्रवों; लेश्या, करण, सम्यक्त्व - अविरति आदि पाँच संवरों; निर्जरा, सिद्ध आदि के लक्षण भी दीपिका की विशेषता को स्थापित करते हैं। षष्ठ प्रकाश में सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, अहिंसा-सत्य आदि पाँच महाव्रतों; ईर्या आदि पाँच समितियों; अनुप्रेक्षा, भावना, संलेखना, अनशन आदि द्वादश तपों के लक्षण तथा सप्तम प्रकाश में जीवस्थान, १४ गुणस्थानों, शरीर, समुद्घात आदि के लक्षण निरूपित हैं। अष्टम प्रकाश में देव, गुरु एवं धर्म तथा लोकधर्म के लक्षणों को स्पष्ट किया गया है, नवम प्रकाश में दया, मोह, राग, द्वेष, माध्यस्थ्य, असंयम, संयम, उपकार, सुख एवं दुःख के लक्षण दिए गए हैं। दशम प्रकाश में प्रमाण, नय एवं निक्षेप के चारों प्रकारों का लक्षण - सहित स्पष्ट निदर्शन किया गया है। इस प्रकार शताधिक पारिभाषिक शब्दों के लक्षण जो तत्त्वार्थसूत्र में नहीं हैं, जैन सिद्धान्त - दीपिका में प्राप्त हैं। इससे इस कृति की विशेषता एवं प्रयोजनवत्ता स्पष्ट हो जाती है।
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नाम से यह कृति स्वतन्त्र ग्रन्थ की प्रतीति नहीं कराती, क्योंकि 'दीपिका' शब्द का प्रयोग टीका के लिए भी होता रहा है। धर्मभूषण रचित 'न्यायदीपिका' जैसी कृतियाँ इसका अपवाद हैं। न्यायदीपिका जैन - न्याय का स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इसी प्रकार 'जैन सिद्धान्त - दीपिका भी स्वतन्त्र कृति होने का परिचय देती है । यह ज्ञातव्य है कि न्यायदीपिका सूत्र ग्रन्थ नहीं है, जबकि प्रस्तुत कृति सूत्र - ग्रन्थ है । 'दीपिका' शब्द दीपक का स्त्रीलिङ्ग है। दीपक प्रकाशक होता है। इस अर्थ में जैन सिद्धान्त की प्रकाशक होने से इस कृति का नाम 'जैन सिद्धान्त - दीपिका' सार्थक है।
पूर्वोक्त शताधिक लक्षणों के अतिरिक्त जैन सिद्धान्त - दीपिका में कतिपय विषय सर्वथा नवीन हैं, यथा
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