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भारतीय व्याकरण शास्त्र की परम्परा : ३५
३. शाकटायन व्याकरण
ईसा की नवीं शताब्दी में रचित पाल्यकीर्ति शाकटायन शब्दानुशासन में लगभग ३,२०० सूत्र हैं। इसमें चार अध्याय हैं। इसमें पाणिनि से थोड़ी भिन्न शैली अपनायी गयी है, परन्तु यह पूर्ण प्रक्रिया ग्रंथ नहीं है। इसका प्रकरण क्रमसंज्ञा, संधि, शब्दरूप, स्त्रीप्रत्यय, परस्मैपद-आत्मनेपद प्रकरण, समास, तद्धित, आख्यात, विकरण तथा कृत प्रत्यय है। शाकटायन वर्णोपदेश में पाणिनीय १४ सूत्रों के स्थान पर १३ सूत्र प्राप्त होते हैं। ण् अनुबंध की पुनरुक्ति का अभाव हैह् य व र ल ब तथा कं का भी पाठ प्राप्त होता है।१७ पाणिनीय सवर्ण के स्थान पर शाकटायन की स्व संज्ञा प्राप्त होती है।१८ ४. सरस्वती कण्ठाभरण९
११वीं शताब्दी में भोजदेव ने सरस्वती कण्ठाभरण नामक व्याकरण की रचना की। इसमें आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में ४-४ पाद हैं। कल सूत्र लगभग ६,४११ हैं। सरस्वती कण्ठाभरण के प्रारम्भिक ७ अध्यायों में लौकिक शब्दों का अन्वाख्यान है, आठवें में स्वर प्रकरण तथा वैदिक शब्दों का अन्वाख्यान। पाणिनियेतर प्रक्रिया ग्रंथ ___पाणिनियेतर वैयाकरणों द्वारा शैली के माध्यम से रचे गये व्याकरणों से. शब्दसिद्धि की सरलता के जानकार पाणिनि अनुगामी वैयाकरणों ने पाणिनीय सूत्रों को प्रक्रिया शैली में संयोजित करने का प्रयास किया।२० परन्तु इन पाणिनीय प्रक्रिया ग्रंथों में भी पाणिनीय प्रकरण क्रम को स्मरण रखने की समस्या बनी रही। स्वतंत्र रूप से प्रक्रिया शैली में रचा गया व्याकरण ग्रंथ में सर्वप्रथम है- कातन्त्र व्याकरण। कातन्त्र व्याकरण
ईसा की प्रथम शती में शर्ववर्मन् रचित यह प्रक्रिया शैली का प्रथम ग्रंथ है जो कातन्त्र, कौमार या कालाप नामों से जाना जाता है। कातन्त्र का प्रकरण क्रम इस प्रकार है।
क) सन्धि - संज्ञा, स्वरसन्धि, प्रकृतिभाव, व्यंजन सन्धि, विसर्ग सन्धि।
ख) नाम चतुष्टय - स्वरान्तपाद, व्यंजनान्तपाद, सखिपाद, युष्मत्पाद, कारकपाद, समासपाद, तद्धितपाद, स्त्रीप्रत्ययान्तपाद।
ग) आख्यात - परस्मैपाद, प्रत्ययपाद, इडागमपाद, घुट्पाद।
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