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देवानन्दा-अभिनन्दन
पुत्रेच्छा थी
छीना था || २२||
अब समझी षडयंत्र, रानी की महलों ने ही इस गरीब का सुख सुना महल उस दिन रोशन था मनी दिवाली
किसी इन्द्र ने रानी की झोली भर डाली ॥२३॥ इसी नृशंस कर्म के फल उसने गृह त्यागा
नहीं लजाया दूध ब्राह्मणी का, वह जागा ||२४|| झूठा है इतिवृत्त जो उसको क्षत्रिय जाने ब्राह्मण और नारी को मुक्ति योग्य न माने ॥ २५ ॥ क्रूर हृदय हैं वे जिनने की देव प्रसारित
नारि - गर्भ से भ्रूण हरण की कथा प्रचारित ||२६|| यह बर्बर हिंसा है मुखौटा लगा धर्म का सत्य, अहिंसा व अचौर्य से जुड़ी अंधता ||२७|| आज हुई मैं पुत्रवती, प्रभु ने स्वीकारा
धन्य हुई दर्शन कर करुणा के
सागर का ॥ २८ ॥
कहते
देवानन्दा हो
सम्मोहित
निश्चल ध्यान मग्न होकर पद्मासन शोभित ॥ २९ ॥ “धन्य धन्य” उद्घोष कर उठे गौतम गणधर
अभिनन्दन जिन-मातु तुम्हारा करते हम सब ॥३०॥
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