Book Title: Sramana 2006 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 128
________________ श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ जनवरी-मार्च २००६ देवानन्दा-अभिनन्दन कुमार प्रियदर्शी* - वैशाली हो गया धन्य प्रभू समवशरण से धन्य हुए नर-नारि शीश ले धूलि चरण-से ।।१।। जय जय त्रिशला-नन्दन का जयघोष गुंजरित मर्त्य लोक में अमृत-घट था स्वयं अवतरित ।।२।। वर्षों की बिन-नाथ धरा के मात्र सहारे आत्म ज्ञान आभा मंडित हो श्रमण पधारे ॥३॥ कुंड ग्राम का बहुशावक नव चैत्य सुशोभित प्रभू-आगमन के प्रकाश से हो आलोकित ।।४।। निर्ग्रन्थ श्रमण के आकर्षण से खिंचे सरल मन ऋषभदत्त - देवानन्दा बैठे कर वन्दनं ।।५।। प्रभु से ज्यों ही मिली नजर देवानन्दा की रोमांचित हो रोम रोम उर ममता जागी ।।६।। हर्ष प्रफुल्लित बाँहों के आभूषण तड़के गद गद नयनों में आनन्दित अश्रु झलके ।।७।। रह रह कम्पन से तन था सम्पूर्ण सिहरता अनिमेष दृष्टि में झाँक रही पुलकित वत्सलता ॥८॥ उमड़ा स्तन से प्यार दूध की धारा बन कर कंचुकी भींजी, लगी छुपाने स्वयं सहम कर ।।९।। *"आराधना" आर०एच०-८०/२०, शाहू नगर, एम०आई०डी०सी०, “जी' चीन्च्वाद, पूना-१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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