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महावीर कालीन मत-मतान्तर : पुनर्निरीक्षण : ८१
कृतज्ञता-ज्ञापन
लेख के लिए दिए गए महत्त्वपूर्ण सुझावों के लिए मैं प्रो० राम स्वरूप जी मिश्र (भूतपूर्व अध्यापक, इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर) एवं प्रो० कमल चन्द सोगानी (भूतपूर्व अध्यापक, दर्शन विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) के प्रति अपनी कृतज्ञता-ज्ञापित करती हूँ। सन्दर्भ :
१. सुत्तपिटके-दीघनिकायो-१,सीलक्खन्धवग्गपालि, विपश्यना विशोधन विन्यास,
इगतपुरी, १९९३, पृष्ठ-२,३; नालन्दा देव नागरी-१ पालि सिरीज, दीघनिकाय,
भिक्षु जगदीश कश्यप द्वारा सम्पादित, पृष्ठ ६. २. सुत्त पिटके, उपरोक्त, पृष्ठ १४९. ३. नालन्दा उपरोक्त, पृष्ठ ४९. ४. नालन्दा उपरोक्त, पृष्ठ ६६. ५. The History and Literature of Buddhism, Calcutta, १९६२,
पृष्ठ १२०. ६. ऊपर वर्णित वादों में यह नाम प्राप्त नहीं है। ७. A history of pre-Buddhistic Indian philosophy, Delhi, १९७०,
पृष्ठ २७८-२७९; यद्यपि प्रो० गोविन्द चन्द पाण्डे इस मत से सहमत नहीं हैं, Studies in the Origins of Buddhism, Allahabad, १९५१, पृष्ठ
३४५। ८. सुत्त पिटके, उपरोक्त, दीघनिकाय-१, पृष्ठ ५४. ९. निवापसुत्त, धर्मानन्द कोशाम्बी, भगवान बुद्धः जीवन और दर्शन, इलाहाबाद,
१९८२, पृष्ठ ८६ में वर्णित, यह आत्मवादी निश्चित ही जैन अथवा ब्राह्मण मत
वाले श्रमण थे। १०. धर्मानन्द कोशाम्बी, उपरोक्त, पृष्ठ १७५. ११. कस्सपसिंहनाद सुत्त, दीघ निकाय, भाग २, पृष्ठ २१०-२२०, रीज़ डेविड्स
अनुवाद, ऑक्सफोर्ड यूनिर्वसिटी प्रेस, यहाँ भी सभी भिक्षुओं की बाह्य आचरण का भेद अधिक महत्त्वपूर्ण है।
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