Book Title: Sramana 2006 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 115
________________ १०८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ उपर्युक्त सन्दर्भ में ही फेफड़े की बिमारी से ग्रस्त ५९ वर्षीय नीना बेनर्जी । द्वारा ‘दया-मृत्यु' के अप्रिय विकल्प के अनुकरण का प्रसंग भी है, जिन्होंने प्राणरक्षक दवा के सहारे जीवित रहने के बजाए चिरनिद्रा में सोने का निर्णय किया। नीना बेनर्जी ने अपनी पुत्री भंगानी से कहा कि जब मेरा अन्तिम समय आ जाए; तो वे प्राण-रक्षक उपकरण हटा दे। पुत्री भंगानी ने, माँ जब पूर्णतः प्राण-रक्षक उपकरणों पर आश्रित हो गई; वही किया और एक घंटे के भीतर नीना बेनर्जी चिरनिद्रा में सो गईं।६ ध्यातव्य है कि 'दया-मृत्यु' को 'इच्छा-मृत्यु' के समकक्ष मानने की भूल . नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ‘इच्छा-मृत्यु' व्यक्ति का नितान्त वैयक्तिक निर्णय होता है। 'इच्छा-मृत्यु' के समर्थकों का कहना है कि अपने जीवन को बनाए या समाप्त करने का निर्णय प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होना चाहिए। इनके दृष्टिकोण में एक स्वस्थ व्यक्ति भी अपने जीवन को समाप्त कर सकता है, लेकिन भारत का सर्वोच्च न्यायालय इसके विरुद्ध है। १९९६ में न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जीवित रहने के अधिकार के समान जीवन को समाप्त करने का अधिकार किसी : को नहीं है। पाश्चात्य विचारक रूसो भी कहता है- मनुष्य स्वतन्त्र पैदा होता है, लेकिन प्रत्येक स्थान पर वह परतन्त्र होता है। वस्तुत: जन्म लेना एक संयोग है; लेकिन जीवित रहना और जीवित न रहना एक संयोग नहीं है। इसीलिए ‘इच्छामृत्यु' को प्रत्येक समाज में आत्महत्या माना जाता है। यथार्थत: यह उचित भी है; क्योंकि कानूनी वैधता ‘इच्छा-मृत्यु' की प्रवृत्ति में वृद्धि प्रदान कर सकती है। कतिपय व्यक्ति मनोवैज्ञानिक या जजबाती कारणों से इसका अनुसरण करने को प्रेरित हो सकते हैं। इसलिए ‘इच्छा-मृत्यु' को वैधानिक अनुमति नहीं दी जा सकती है। जैसे १३ दिसम्बर २००१ को भारतीय राज्य केरल के उच्च न्यायालय ने ७३ वर्षीय बी०के० पिल्लै को अपनी प्राण त्यागने की अनुमति देने से अस्वीकार कर दिया। असाध्य रोग से पीड़ित पिल्लै ने न्यायालय के समक्ष तर्क रखा कि वे सम्मानजनक जीवन जीने में असमर्थ हैं। लेकिन न्यायालय ने यह कहकर उनकी याचिका अस्वीकार कर दी कि पिल्लै की याचिका के मूल्यांकन के लिए न्यायालय के पास कोई दिशा-निर्देश नहीं है। न्यायालय ने कहा सम्भव है पिल्लै लम्बी बिमारी के अतिरिक्त अन्य कारणों से भी अपने जीवन को समाप्त करना चाहते हों। यही कारण है कि लगभग १०० व्यक्तियों द्वारा ‘इच्छा-मृत्यु' का अनुसरण करने में सहायक बनने वाले एक अमेरिकी डॉक्टर जैक कैवेर्कियन को 'डॉ० डेथ' कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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