Book Title: Sramana 2006 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 110
________________ वैदिक ऋषियों का जैन परम्परा में आत्मसातीकरण : १०३ केण अन्माहओ लोगो केण वा परिवारिओ का वा अमोहा वुत्ता, जाया! चिंतावरो हु मि। मच्चुणाऽन्भाहओ लोगो जराए परिवारिओ अमोहा रयणी वुत्ता एवं ताय। वियाणह।।उत्तराध्ययन२२ हम देखते हैं कि वैदिक परम्परा के संन्यास-परक श्रेष्ठ सन्दर्भो को अपने अनुकूल बनाकर जैनाचार्यों ने अपने ग्रन्थों में सम्मानपूर्ण स्थान दिया। इसी प्रकार वैदिक परम्परा के श्रद्धेय राम, कृष्ण, शिव के कथानक को भी अपनी परम्परा के अनुसार ढालकर वन्दनीय स्थान प्रदान किया। विमलसूरि रचित पद्मचरित में वर्णित राम के कथानक से इस तथ्य को आसानी से समझा जा सकता है। कृष्ण को अनदेखा नहीं किया जा सकता था इसलिए पहले तो उन्हें नरक में डाला - पर बाद में उन्हें तीर्थंकर बनाया।२३ कृष्ण का सन्दर्भ आत्मसातीकरण की इस प्रक्रिया को समझने में सर्वथा सार्थक है। कालान्तर की शताब्दियों में भी हम इस प्रक्रिया के दर्शन पाते हैं।आठवीं शताब्दी के प्रसिद्ध जैनाचार्य हरिभद्र ने अपने लोकतत्त्वनिर्णय में ऐसे ब्रह्मा, विष्ण एवं शंकर के साथ जिन की स्तुति की है जिनके सभी दोष विनष्ट हो चुके हैं और जिसमें सभी गुण विद्यमान हैं। यस्य अनिखिलाश्च दोषा न सन्ति सर्वे गुणाश्च विद्यन्ते। ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै।।२४ । एक जैनाचार्य द्वारा तीर्थंकर (जिन) के साथ वैदिक देवताओं ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर की स्तुति धार्मिक सहिष्णुता का अपूर्व उदाहरण है। साथ ही यह हमें दोनों परम्पराओं में निहित मूल आधारबिन्दुओं को खोजने में सहायता प्रदान करता है। श्रेष्ठ मानक मूल्यों के आत्मसातीकरण की यह प्रक्रिया आगे भी चलती रही। १२वीं शताब्दी के आचार्य हेमचन्द्र ने ठीक इन्हीं शब्दों में ऐसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर (शंकर) एवं जिन की स्तुति की है जिनमें संसार परिभ्रमण के कारणभूत राग-द्वेष के तत्त्व सर्वथा क्षीण हो गये हैं। भवबीजांकुरजनना रागद्याक्षयमुपागता यस्य। ब्रह्मा वा विष्णुर्वा महेश्वरो जिनो वा नमस्तस्मै।। २५ आत्मसातीकरण की यह प्रक्रिया अभिलेखों में भी दिखायी पड़ती है। जैसेचाहमान युवराज कीर्तिपाल के नाडोल अभिलेख में। कीर्तिपाल राजा आल्हड़देव का छोटा पुत्र और केल्हड़देव का अनुज था। यह अभिलेख विक्रम संवत् १२१८ (११६१ ई०) का है जो नाडोल के महावीर मन्दिर को दान देने के सम्बन्ध में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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