Book Title: Sramana 2006 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 89
________________ ८२ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ / जनवरी-मार्च २००६ अंक ९०, १२. सूत्रकृतांग, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, जिनागम ग्रन्थमाला, १९८२, द्वितीय श्रुतस्कंध, द्वितीय अध्ययन, सूत्र ७१७, पृष्ठ १००. १३. सूत्रकृतांग सूत्र, उपरोक्त, द्वितीय श्रुतस्कंध, द्वितीय अध्ययन, सूत्र ७१८, पृष्ठ १००. १४. उपरोक्त, प्रथम श्रुतस्कंध, प्रथम अध्ययन, सूत्र ७-८, पृष्ठ २०, यद्यपि सांख्य और वैशेषिक भी पंचमहाभूत को मानते हैं, पर सब कुछ नहीं मानते हैं। इसलिए विद्वान इसे लोकायतों का मत मानते हैं। १५. उपरोक्त, प्रथम श्रुतस्कंध, प्रथम अध्ययन, सूत्र ९-१०, पृष्ठ २३. १६. उपरोक्त, प्रथम श्रुतस्कंध, प्रथम अध्ययन, सूत्र ११-१२ पृष्ठ २५. १७. उपरोक्त, प्रथम श्रुतस्कंध, प्रथम अध्ययन, सूत्र १३ १४ पृष्ठ २८. १८. सांख्य दर्शन की भाँति, इसके अनुसार आत्मा अमूर्त, कूटस्थनित्य और सर्वव्यापी है। १९. सूत्रकृतांग, उपरोक्त, प्रथम श्रुतस्कंध, अध्ययन एक सूत्र १७ - १८ पृष्ठ ३५. . बौद्धों के क्षणिकवाद से मेल खाता है जिसके अनुसार पाँचो से भिन्न आत्मा नाम का कोई पदार्थ नहीं है। २२. २३. सूत्रकृतांग सूत्र, उपरोक्त, प्रथम श्रुतस्कंध, अध्ययन एक सूत्र १८-२६ पृष्ठ ४०. २४. यह भी क्षणिकवाद का एक रूप है। २५. सूत्रकृतांग, उपरोक्त, प्रथम श्रुतस्कंध, द्वितीय अध्ययन, सूत्र १-५ पृष्ठ ४३. २६. यह वाद आजिवकों के निकट है। २७. सूत्रकृतांग, प्रथम श्रुतस्कंध, द्वितीय अध्ययन, सूत्र ६- २३, पृष्ठ ४८-५०. २८. सूत्रकृतांग, प्रथम श्रुतस्कंध, द्वितीय अध्ययन, सूत्र २४ २९, पृष्ठ २५. २९. बौद्ध धर्म के अक्रियावाद की भाँति । ३०. सूत्रकृतांग, प्रथम श्रुतस्कंध, अध्ययन तीन सूत्र ५-१०, पृष्ठ ६५-६७. ३१. ऐसे मत उपनिषदों, सूत्रों, स्मृतियों, सांख्य सभी में दृष्टिगत होते हैं। ३२. सूत्रकृतांग, प्रथम श्रुतस्कंध, अध्ययन तीन सूत्र ११ १२, पृष्ठ ७७. ३३. बौद्ध, आजीवक, वैष्णव परम्परा के निकट प्रतीत होते हैं। ३४. सूत्रकृतांग, प्रथम श्रुतस्कंध, चतुर्थ अध्ययन, सूत्र ५-६, गाथा, ८०-८१. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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