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८८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६
६. कर्म सिद्धान्त-व्यक्ति स्वातंत्र्य ७. पर्यावरण की रक्षा ८. शाकाहारी जीवन शैली ९. व्यसन-मुक्त जीवन १०. दान, शील, तप, भावना इत्यादि
भगवान् महावीर ने कहा कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में रमता रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। उनके ही शब्दों में, "किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए, यही ज्ञानियों के ज्ञान का सार है। अहिंसा, समता, समस्त जीवों के प्रति आत्मवत भाव यही शाश्वत धर्म है।'' उन्होंने जीवों के प्रति समादर के भाव पर जोर देते हुए कहा, "सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु (जीवन) प्रिय है, सुख अनुकूल है, दुःख प्रतिकूल है। वध सबको अप्रिय है, जीवन सबको प्रिय है। अत: किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए, किसी के प्रति वैर और विरोध का भाव नहीं रखना चाहिए।"४ आज का मनुष्य अहिंसा के उपर्युक्त मूल्यों को भूल गया है। परिणामस्वरूप आज विश्व में हिंसा, अशान्ति, तनाव, जीवन-मूल्यों का अवमूल्यन, सौहार्द का अभाव एवं आतंक बढ़ता ही जा रहा है। आइए, हम उन उपायों पर विचार करें, जो मानवता को वास्तविक सुख प्रदान करने में समर्थ हो सकते हैं। इसके पूर्व हम इस बात पर भी विचार करें कि मनुष्य क्या मात्र एक आर्थिक यन्त्र है?
___ आधुनिक सभ्यता, जो पूर्णतः भौतिकवाद पर आधारित है, ने मनुष्य के व्यक्तित्व को संकुचित करके उसे मात्र एक आर्थिक यन्त्र बना दिया है। आधुनिक युग में मनुष्य ने बहुत सारी विचारधाराओं का सहारा लिया ताकि वह पूर्ण समृद्ध एवं सुखी बन सके। लेकिन क्या उसे सुख एवं आनन्द प्राप्त हुआ? नहीं, आज मनुष्य को समृद्धि तो प्राप्त हुई है, लेकिन वह मानसिक शान्ति प्राप्त नहीं कर सका। कुछ वर्षों पहले साम्यवाद का बहुत बड़ा प्रभाव था और लगता था कि यह सारे विश्व को लाल रंग में रंग देगा। इसके प्रचारकों ने कहा कि हम गरीब एवं शोषित वर्ग को सम्पन्नता एवं गौरव प्रदान करेंगे, सामान्य व्यक्ति के जीवन को ऊंचा उठायेंगे, सबमें समानता लायेंगे लेकिन मात्र १०० वर्षों से भी कम समय में यह असफल सिद्ध हुआ। वहाँ के देशों की सामान्य जनता ने ही इस विचारधारा का विरोध किया, क्योंकि जीवन की आवश्यक वस्तुओं के अभाव से उनका जीवन त्रस्त हो गया था। दूसरी बड़ी विचाराधारा पूँजीवाद की है, जिसका नायक अमेरिका है। इसका उद्देश्य है, प्रकृति के संसाधनों का अधिकतम उपभोग।
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