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जैन धर्म के जीवन मूल्यों की प्रासङ्गिकता : ८७
१) सभी जीवों के प्रति सम्मान (Reverence for all form of life), हिंसा की समाप्ति तथा सही शिक्षा, परस्पर सहयोग एवं बातचीत द्वारा अहिंसा को व्यवहार में लाना
२) मानवीय अधिकारों के सम्मान का भाव
३) लड़ाई-झगड़ों का शान्तिपूर्ण तरीकों से हल
४) स्त्री और पुरुष को समान अधिकार तथा सम्मान
५) सभी राष्ट्रों में स्वतंत्रता, न्याय, लोकतंत्र, सहिष्णुता तथा सहयोग की
भावना का प्रचार
६) उन मूल्यों तथा जीवन शैलियों का विकास, जिसके द्वारा व्यक्तियों, समूहों एवं राष्ट्रों में शान्ति का विकास हो
७) राष्ट्रों के बीच जाति, वर्ण, रंग आदि का भेदभाव समाप्त करना ८) मानवीय जीवन-मूल्यों का प्रचार
जैन धर्म के जीवन मूल्य
उपरोक्त विवेचन के सन्दर्भ में अब हम जैन धर्म के जीवन-मूल्यों की प्रासंगिकता पर विचार करें कि आज सारे विश्व को सुखी और समृद्ध बनाने में उनकी कितनी उपयोगिता है।
मूल्य का क्या अर्थ है ? मूल्य का अर्थ है - ऐसे भाव या तत्त्व जो मनुष्य को पतन के गर्त से निकाल कर उत्कृष्टता की ओर ले जाते हैं। ज्ञानार्णव में कहा गया कि प्राचीन काल से ही महर्षियों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, पुरुषार्थ के चार भेद माने हैं। यदि अर्थ और काम, धर्म द्वारा मर्यादित नहीं हों तो वे मनुष्य के लिए अनर्थकारी हो जाते हैं। मर्यादित अर्थ और काम मूल्यवान होते हैं।
जैन धर्म में मुख्य रूप से निम्न मूल्यों को महत्त्व दिया गया है :
१. अहिंसा और करुणा
२. समता या समभाव
३. अपरिग्रह - श्रावक के लिए इच्छा परिमाण
४. अनेकान्त अर्थात् वैचारिक उदारता
५. पुरुषार्थ अथवा श्रम
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