________________
महावीर कालीन मत-मतान्तर : पुनर्निरीक्षण : ७९
नजदीक बताता है। माहण और समण-माहण दोनों ही वर्ग ऐसा था, जिसके प्रति महावीर शंकालु होने के बावजूद श्रद्धा भाव रखते थे। धर्म विचार के सन्दर्भ में श्रमण एवं ब्राह्मण को एक सा विचार रखने वाला बताया गया।७० इन स्थानों पर श्रमण ब्राह्मण (समण माहण) एक साथ लिखा हुआ प्राप्त होता है, दूसरे स्थानों पर दोनों शब्द अलग-अलग (समणं वा माहणं वा)१ वर्णित हैं। कई विवरण ऐसे भी प्रतीत होते हैं, मानो 'समण' शब्द 'माहण' की उपाधि रूप में प्रयुक्त हुआ हो (समण-माहण सारंभा सपरिग्गाहा...)।७२ जिस प्रकार निग्रंथ श्रमण के लिए समणाणं णिग्गंथाणं७३ शब्द प्रयुक्त हुआ, उसी प्रकार ब्राह्मण श्रमण के लिए समण माहणा शब्द प्रयुक्त हुआ था। कहने का तात्पर्य है कि वे ब्राह्मण जो श्रमण थे, और वे यदि श्रमण पयार्य का पालन करते रहे तो धीरे-धीरे निग्रंथ श्रमण की श्रेणी में आ जाएंगे। तत्कालीन समाज में ब्राह्मण का वर्चस्व अभी-भी बना हुआ था, उनके ज्ञान ने महावीर को भी अपनी ओर आकर्षित किया था। वे ब्राह्मण जो तप के मार्ग पर चलने वाले थे, श्रमण पयार्य का पालन कर रहे थे, वैदिक ज्ञान (कर्मकाण्ड नहीं), भाषा (प्राकृत, मागधी, अर्धमागधी आदि) से सम्पन्न थे, उन्हें महावीर स्वामी के उपदेशों ने आकर्षित किया। जैन धर्म के रूप में उन्हें अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक विकास का अवसर प्राप्त हुआ था। यही कारण है कि महावीर के प्रारंभिक गणधर ब्राह्मण थे। जिन्होंने महावीर के उपदेशों को संग्रहीत किया, और भाषा में बांधा। दूसरी ओर जैन धर्म के विकास और प्रसार में भी योगदान दिया। आज भी अनेकों जैन मुनि ब्राह्मण वर्ग के हैं।
___ अपनी धार्मिक नैतिक विशेषताओं के कारण भी श्रमण और ब्राह्मण एक दूसरे के नजदीक थे, न कि विरोधी।७४ ऐसी ही अवधारणा महासीहनाद सुत्त५ के विवरणों से प्राप्त होती है।
प्राप्त विवरणों से स्पष्ट है कि सभी भिक्षुओं के लिए सबसे आवश्यक था'तप'। भिक्षओं के वर्गों का विभाजन भी बाह्म तप के आधार पर ही दृष्टिगत होता है। आन्तरिक तप के माध्यम से अधिकांशत: वर्ग मोक्ष के लिए तत्पर था, जो मोक्ष के लिए तत्पर नहीं था, वह भिन्न प्रकार के जादू-टोने-तप आदि करता हुआ एक चिन्तक न होकर सामान्य (आज के ढोंगी बाबाओं की तरह) साधु था, जिसने जीविकोपार्जन के लिए यह मार्ग अपनाया था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व का भारत आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से भी एक परिवर्तित स्थित का युग था। लोह का प्रयोग, कृषि योग्य भूमि का विस्तार, व्यापार का प्रसार, राज्यों और महाराज्यों के उदय ने समाज के बहुत बड़े वर्ग को धर्म और दर्शन से जोड़ा। कुछ वर्ग अपनी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org